SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ अनुसन्धान-५८ मिथ्यात जे मांने कुदेव, कुधर्म कुगरनी करइ सेव, हाल्या चाल्यानी शक्ति न होय, थावरपणो ते कहीए सोय ॥५१॥ दृष्टिगोचरइ नावइ जीव, ते कहीए सुक्ष्म सदीव, प्रजा ते पुरी नव करइ, अप्रजाप्तो सदाइ मरइ ॥५२॥ एकइ सरीरें जीव अनंत, साधारण ते कहीए जंत, दांत हाथ अंग हालें घणो, पाप उदय ते अथिरपणो ॥५३॥ नाभि उपरि पाडुयो आकार, अशुभपणो ते पाप प्रकार, भुंडो बोलइ लोक सब कोय, दोभागपणो ए सही होय ॥५४॥ स्वर बोलइ ते असूयांमणो, पाप उदय ते दुस्वरपणो, वचन न माने जेहनो कोय, अनादेयवचन एहज होय ॥५५॥ रूडो करतां जस न बोलाय, अजसपणो ते कहिवाय, नरकगति नरकानुपूरवी, नरकायुं पापें अनुभवी ॥५६।। क्रोध-मांन-माया-लोभज जांण, संजलना ए पक्ष प्रमाण, क्रोध-मान-माया-लोभ विचार, प्रत्याख्यानी मास ज च्यार ॥५७॥ क्रोध-मांन-माया ने लोभ, वरस एक लगें एहनो थोभ, अप्रत्याख्यांनी ए कहेवाय, पाप उदय त्यारे नवि जाय ॥५८॥ क्रोध-मांन-माया ने लोभ, भव भवना एहज मोभ, अनंतानबंधी एहज च्यार, पाप उदय रझले संसार ॥५९॥ हास-रति-अरति-भय-सोक, छठो ते डुगंछा थोक, पुरष-स्त्री-नपुंसकवेद, तीर्यच इकसठमो भेद ॥६०॥ तिर्यंचनी आंनपूरवी जांण, एकंद्री ते पाप प्रमाण, बेरंद्री तेरंद्री सही, चउरंद्री पाप प्रकृत कही ॥६१॥ कुछितगति रासभनी जांण, उपघात पडजीभी नांण, वर्ण-रस-गंध-स्फर्श विचार, ए पांमें ते असुभ असार ॥६२॥ पाटो बिहुं दिश माकडबंध, ऋषभनाराचसंघयण ए संच, बिहुं दिस माकडबंध पाटो खीली नही, नाराचसंघयणनी ए वातज कही ॥६३॥ एक दिशि माकडबंध ज होय, अर्धनाराच इणिपरि होय, कीलके खीली ढीली जोय, छेवटइ संधि लगाडी होय ॥६४॥
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy