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डिसेम्बर २०११
चोथुं द्वार फरसना कहेश जे छई आकाशना सिद्ध प्रदेश मध्य जोयणभागि चोविसमई सिद्ध रह्या छई छेहलई गमई ॥१८॥ एह खेत्री अधिकी फरसना रुंधई चिहुं दिसि प्रदेश आकाशना तेजई रुंधई दीप आकाश सात प्रदेशी फरसना तास ॥१९॥ कालद्वार पांचमुं सिद्ध तणुं एक जीव आश्री आदि तस भ मोक्ष गया ते६७ जीव अनंत सर्वसिद्ध नहीं आदि न अंत ॥२०॥ छट्ठ द्वार अंतर नवि सिद्ध सिद्ध चवी वली नो हई सिद्ध सातमुं भाग द्वार ते लहुं जहीइं पुछई तइही कहुं ॥२१॥ अनंतमो भाग ए निगोदनो मान मुगति पोहता सिद्धनो आठमुं भाव द्वार ते जोय केहई भावई सिद्ध ज होय ॥२२॥ राग रोसनुं कर्मज नहीं उपसमिक बीजुं ए रही
त्रीजुं क्षायोपशमिक पा(भाव) चोथेनं क्षायक वस्तई भाव ॥२३॥ पांचमुं पारणामिक सही कर्म क्षप्यां तो शिवगति ही भव्याभव्य न होइ कदा जीव अजीव नहीं ए सदा ||२४|| क्षायिकनई पारणामिक बेउ वर्त्तइ भाव सदा सिद्ध उ बीजाणि न होई भाव सर्वसिद्धनो एह स्वभाव ॥ २५ ॥ ७० नवमं अल्पबहुत्व सिद्ध द्वार तेहतणा हवई कहुं विचार जन्म नपुंसक मोक्ष न जाय दीक्षा पणि तेहनइं नवि थाय ॥२६॥ कीधा जे छेदादिक करी मोक्ष लहई ते दीक्षा वरी
त्रीण वेदमांहिं नपुंसक जीव थोडा सिद्ध होइ सदीव ||२७|| तेथी स्त्रिवेद सिद्ध असंख तेथी पणि नर सिद्ध असंख इम नर नारि नपुंसक सिद्ध थोडा तेह अनंता सिद्ध९ ॥२८॥ ए नव द्वार मोक्षनां जाणि नवरं तत्त्वना भेद वखाणि बसइं छिहोत्यरि सर्व संखेव सद्दहतां समकित ततखेव ॥२९॥ मानइं जीवादिक नवतत्त्व समकितवंत कह्यो ते सत्व तिणि वारी दुगति एकंत भवसागरनो आण्यो अंत ||३०|| समकित अंतरमुहूरत मांन फरसिउं जेणइ आणी सांनि अर्द्ध पुद्गलपरावर्त्तमान होई संसारि अधिक नहीं ताण ॥३१॥
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