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अनुसन्धान-५७
लोकाग्र भागइं ते रहइं नास्तिक होइं ते नवि सद्दहइं तेहनइं मोक्ष थापवा भणी पहिलो भेद कहै त्रिभूवन धणी ॥४॥ मोक्ष पदारथनो ए मतो एकपद नाम माटइ छई छतो जे जे एक पद ते छई सही जिम जगि जीव देव घट दही ॥५॥ बै पद नाम पदारथ जेह केतला सत्य असत्य होइ तेह श्रीनंदन जिम हस्तीदंत राजपूत्रनइं लक्ष्मीकंत ॥६॥ ५९जपाकुसुम अनइं मृगशृंग ए बिहुं शब्दि छता शिर गंग बिहु शब्द नामइं अछता जेह ६°शशकशृंग वंध्यापुत्र तेह ॥७॥ तुरंगमसींग अनइं खरसींग पाडो ग्याभणो करहीसींग आकाशकुसुम संयोगी नाम एहनो कहीइं न दीसइं ठाम ॥८॥ तिम एक पद नाम मोक्ष निसंदेह छइं निश्चय मधुरो संदेह । वली मार्गणाद्वारइं करी मोक्ष परूपणा कऊं हित ६२धरी ॥९॥ बीजो भेद मोक्षनो एह कुण कुण जीव लहइं पुण तेह मानव कोइक पामई मुगति त्रिहुं गति नानइं नही ते मुगति ॥१०॥ पंचेंद्रि कोईक सिद्धि जाय बित्ति चउरिंद्री नयें न कहाय त्रसकायथी शिवपुर होइं पांच काय पुण न लहइं शोय ॥११॥ भव्य जीव ते पामइं एह अभव्यजीव नवि पामइं तेह लहइं सन्निया मोक्ष ६३दूयार असन्निया न लहइं निरधार ॥१२॥ पांचमई चारित्र लहइं शिवसुक्ख पहिले चिहुं नवि पामई मुक्ख समकित भेद अछइं ते पंच पहिला चिहुं नहि६४ नहि शिवसंच ॥१३॥ क्षायिक समकित जव जीव लहइं मोक्ष पामइं ते जिनवर कहइं अनाहारी मुगति जई मलई आहारी संसारइं रलई ॥१४॥ केवलदर्शन शिवसुख सही चक्षु अचक्षु अवधि त्रिहु नहीं केवली मोक्ष लहइं सर्वदा बीजइं चिहुं ज्ञानइं नहीं कदा ॥१५॥ इणि दस थानकि पामइं मुगति प्रथम द्वार ए जाणइं सुमति बीजुं द्वार ते द्रव्य प्रमाण अभव्य जीवथी अनंत सिद्ध माण ॥१६।। त्रीजुं क्षेत्र द्वार लोकाकाश अशंखमई भागि सिद्ध नीवास अथवा सर्वसिद्ध जिहां६५ रहइं लोक असंखमइं भागि सिद्धि ६६कहें ॥१७॥