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________________ डिसेम्बर २०११ ससलादिक आहेडो करई साहत्थी हाथि हत्थीआर धरई जीवाजीवथी अणावइं जेह आणावणी सतरमी तेह ||१३|| सूत्रधार करई काष्टना कौंच माहिं खीलीना ते संच रायना घरथी अणावइं सालि अजीव थकी इम पड्या जंजालि ॥१४॥ अढारमी हवइं वीआरणी फल ईटालादिक फोडणी अथवा दलाल दोभासुं करई परवंची पाप पोत भई ॥१५॥ सूनई मन ल्यई मुकइं कांइं अनाभोगकी किरीया थाई इह परलोक विरुद्ध जे नाम ते अणवकंखपच्चईआ नाम ॥१६॥ मन वच काया सावद्य योग अन्ना पओग क्रियानो योग अथवा कुंभारादिक थकी वस्तु घटादि करावइं की ॥१७॥ कुटंब मली बांधइ अष्टकर्म सामुदानकी ३९ किरिया मर्म माया लोभ कही प्रेमकी क्रोध मान ते प्रद्वेषकी ॥१८॥ ईरीयावही किरिया साधुनई अथवा केवलज्ञानी कनइं हींडतां बोलतां लागइं क्रिया तिण लघुकर्मतणी विक्रिया ॥ १९॥ तेहज कर्म समय दो रहइं त्रीजइं विसराल जिनवर कह ए पंचवीस क्रिया ते लही कर्म आवई तिण आश्रव कही ॥२०॥ ए आश्रव बइतालीस भेद साधुनई ए पंचतत्व विच्छेद भानुचंदवाचक शिष्य सार ४ ९ देवचंद कहई तत्वविचार ॥२१॥४२ संवर तत्व छटुं सुखकार जेणि कीधइं लहीइं भवपार भेद सतावन तेह प्रधान कहुं सुणो छांडी अभिमान ॥१॥ पंच सुमति त्रिणि गुपतिसु कर्म बावीस परीसह दस यतिधर्म बार भावना चारित्र पंच संवर द्वार सतावन संच ॥२॥ सूर्यकिरण जेणे पंथई४३ भर्या पल्हलां लोके जिहां संचऱ्यां युगदृष्टिं जयणा तिहां करई पहिली ईर्यासुमति ४४ गति धरई ॥३॥ भाषासुमति सत्य मीठी वाणि पापरहित करई निरवाणि ५३ एषणा त्रीजी ल्यइं अणगार दोष बइतालीस शुद्ध आहार ||४|| लेतां मुकतां पूंजइं जोय आयाणभंडनिखेव्वणा सोय थुंक सलेखम मल मांतरूं परठवतां जीव जतन ज ४५ खरूं ॥५॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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