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________________ ५२ अनुसन्धान-५७ पांचमुं कुब्ज षट् हुंड संठाण आगल्या दश ते पाप बंधाण पंच पंच संघयण संठाण ब्यासी भेदतणो ए ३५ मा ||३७|| प्रतिबोधी अकबर सुलताण मुंकाव्युं श्रीशेत्रुंज दाण भानुचंद गुरु सीस सुजाण देवचंद कहई तत्त्व वखाण ॥३८॥३६ पांचमुं आश्रव तत्त्व विचारि भेद बेतालीस तेहना धारि काया जीभ आंखि नाशा कान मोकलां पांचई आश्रव मान ॥१॥ क्रोध मान माया लोभ कषाय अयुक्ति प्रयुंज्या आश्रव थाय जीव हणई नई जुटुं लवई परधन लेवा निज मति ठवई ॥२॥ कुसीलं परिग्रह अव्रत पंच चऊद भेद आश्रव ए संच त्रणि योग जे मन वच काय पाप प्रयुंज्या आश्रव थाय || ३ || एतलई सतर भेद मनि जाणि हवई पंचवीस क्रिया वखाणि पहली क्रिया कही कायकी जयणा विण होई काया थकी ॥४॥ शस्त्रादिकथी पातिक जेह अधिकरणकी बीजी तेह जीवाजीव ऊपरि जे द्वेष त्रीजी प्रद्वेषकी ए देख ॥५॥ अवर तपावई आपरं तपईं परितापनकी चोथी थपई जीवनई जे चूकवरं प्राण थकी ते कहीई प्राणातिपाती ॥६॥ मूलनी पंच क्रिया ए कही एहथी वीस अवर पणि लही करसण प्रमुख आरंभ आचरई ते आरंभकी क्रिया करई ॥७॥ धण कण ढोर दास मेलवरं परिग्रहकी किरीया केलवई मायाप्रत्ययकी आठमी कपटइं धर्म करई आनमी ॥८॥ मिथ्या श्रुत सद्दहणा करी मिच्छादंसणवत्ती खरी अपच्छखाणी अविरति कही कुतिक जोणा दृष्टिकी लही ॥९॥ पुष्टिकी राग थिकी सुकुमाल फरसई जीव पशू स्त्री बाल अथवा राग द्वेष मन धरी पुठिं पृष्टिकी किरीआ करी ॥१०॥ पाडुची किरीया तेरमी ३७ अपूर्व वस्तु परनी नवि गमी निज धण घरनुं वर्णन सुणी हर्षे ते सामंतोवणी ॥११॥ अथवा तक्रघृतादि मझारि जीव पडई तें पातक धार परवश करइं अरिंट ढिंकूया यंत्रादिक नेसत्थीकि (क्रि)या ॥१२॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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