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________________ ४८ अनुसन्धान-५७ वस्तु अजीवभेदह अजीवभेदह धर्माधर्म आकाश त्रिणि त्रिणि भेदज एहनां खंध देश प्रदेश कालभेद दसमो कह्यो पुदलग (गल) च्यार विशेश चउद भेद ए अजीवना सद्दहतां आनंद वाचक श्री भानुचंदगुरु सीस कहें देवचंद ॥२०॥१७ पुण्य प्रकृति त्रीजी हवई कहुं भेद बेंइतालीस तेहना लहुं सुख विलसइं शातावेदनी पहली प्रकृति कही पुण्यनी ॥१॥ पुण्यप्रकृति गुण बीजो एह उंचु गोत्र लहइं नर जेह मानवभव मुंकी मानवी त्रीजई थाइं वली मानवी ॥२॥ चोथइं नरानुपूर्वी होय अवरगति बांधि अंति १८ नर सोय आनुपूर्वी तेहज तुं जाणि अनेथि जातां आणि ताणि ॥३॥ पांचमइं नरथी सुरगति लही देवानुपूर्वी छट्ठि कही जाति पंचेंद्री लहई सातमई पुण्यतत्व निसुणो आठम ||४|| ऊदारिक वैक्रीय आहार तैजसकार्मण पंच प्रकार पहलां त्रिण देह अंगोपांग हूया धुरिथी पनरह भंग ॥५॥ पहलु व्रजऋषभनाराच संघयण भेद ए सोलमो साच पहलुं समचउरंस संठाण सतरसमो ए भेद प्रमाण ||६|| अढारमइं वर्ण वारु रूप उगणीसमई देह गंध अनूप वीसमइं रस रूडी वली जेह एकवीसमई सुकुमाल स्वदेह ||७|| अतिभारे हलूओ नवि होय अगुरुलघुकाय बावीसमई जोय दूर्द्धषरूप देखी सहू नमई पराघात कर्म त्रेवीसमई ॥८॥ सुरभि स्वास होइं चोवीसमई आतप सूरय परि पंचवीसमई ससि सम सोहईं सभा मझारि उद्योतकर्म छव्वीसमई धारि ॥९॥ गज जिम शुभगति सतावीसमई अंगोपांग शुभ अठावीसमई त्रसदसादि कर्म हवइं सुणो जाणें भेद छाया तावड तो ॥१०॥ भयथी त्रासइं ते तत्र ( त्रस ) कहिआ ओगणत्रीसमई १९विगलिंदिआ जस दीसइं परगट देह मर्म त्रीसमई बांध्युं बाद कर्म ॥११॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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