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________________ डिसेम्बर २०११ वेश्यावसणिइं गमई अरथ, ते पुरिस अधन्नउ, पाच्छइ झूरई मनहमाहि, जिम वणिअ कयवन्नउ, चोरह जणणी इम भणइ ए सांभलि वच्छ वात, निश्चिइं जीवीअ जाइसीइए, जइ पाडिसि खात्र ॥१६॥ दीसई चोर न देसमाहि, जिम सूसमि रंकु, घर ऊघाडे बारि लोक, हिव सूइ निसंक, परस्त्री दोसिइं रावणहि ए, दीउं नरगि पिआणउं, दसरथनंदणि रामदेवि, किउं अकह कहाणउं ॥१७॥ निअ निअ मंदिरि भणइं नारि, सांभलि भरतार, नारि पिआरी जोअतउ, हिव जाणिसि सार, रंगिहिं घरणी भणइं नाह, मुणिधम्म विचारो, मन सिद्धिइं हिव करिन सामि, परस्त्री परिहार ॥१८॥ वस्तुः जूअ वारीअ जूअ वारीअ मंस संसुत्त, सुरापान नवि जाणीअ, वेसवसण नयणे न दीसइं, पारधि जीव न मारइं, चोर कोइ नयणे न दीसइं, कुमरड रायह मूलतउ, परस्त्रीनउ परिहार, सातइ वसण निवारि करि, गहिउ धम्मह भारु ॥१९।। पाणी गालई तिन्नि वार, अणाथमी करता, कुमरनरिंद तणइं राजि, सवेइ पडिकंता, वडा श्रावक थिआ अच्छई, श्रावकविधि पलाई, धम्मिहिं लीणा राति-दिवस, पातक ते टालइं ॥२०॥ बहिनडी बांधव भणई ए, मज्झ कउतिग भावइं, हेमसूरि गुरु तणउ बोध, अम्ह भलउ सुहावइ, कुमरविहार वंदावि चालि, जिण राय कराविअ, अणहिलवाडउं कुमरपालि, तिलि तिलि मंडाविअ ॥२१॥ सोवनथंभे पूतली ए, आपुण जोअंती, निरुवम रूविहिं आपणई ए, तिहुअण मोहंती, हीरे माणिक चूनडी ए, पाथरखंड जडिआ, निम्मल कंतीअ बिंबरासि, अइनिउणे जडिआ ॥२२॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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