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________________ डिसेम्बर २०११ मेरु खडी फरसीइ जाम, मसि कीजइ सायर, अंत न लाभइ गुणह तणउ, जिम चंद-दिवायर, पहिलउं धरीइ धज-पताक, गिरि मेरु समाणा, कुमरविहारह करइ भगति, सवि मंडलिक राणा ॥२॥ सोवन थंभे पूतली ए, मई मयगल दीठा, सांभलि कुमरनरिंदराय, जिनपंडित बइठा, रायह कुमरनरिंदराय, हेमसूरि बूझावइ, आहेडउ वारउ सयल, राउ धम्म करावइं ॥३॥ अरिठनेमि जिम कुमरपालि, डांगरउ वजाविउ, छाली बोकड करई वात, गाडरि वधाविउ, ससला नाचइं रूलिअभरे, अजरामर हुआ, लहिआ दहिआ करइं आलि, पारेवइ सहिआ ॥४॥ भइंसा अनइ हरिण रोझ, सूअर अनइं संबर, चीत्रा कुमरनरिंदराजि, रंगि नाचइ तीतिर, जू अन मांकुण लीख कोइ, किमईअ न मारइं, हरिणा-हरिणी करई केलि, सुखि हेमसूरि वारई ॥५॥ लावा लवइं पंजरि थिआ, सुखिआ छउ भूतलि, सूडा नवि पंजरि थिआ, पुण नाचइ सीतलि, काबरि अन्नइं होल भणइं, सांभरि तउं सारइं, पाणि माहि जिम छल्ल ए, लोधा नवि मारई ॥६।। सारस रीस रिहांस लवई, मोरडी अवधारइं, अखईअ होजे कुमरपाल, अम्ह मरितु न आवइं, काग सरप तिहिं सुणहडा, धाउ कोई नवि घालई, न मरउं कुमरनरिंदराजि, सुखि हीडउं चुण लेता ॥७॥ कंटेसरि चामंड भणई, सांभलि हो असाउगि, छंडि न पुडणा तणीअ वात, ए उभई उसावग, कंटेसरि आपणइ चित्ति थकी आलोचीअ, हेमसूरि सरिसउ किसिउ, रोस जस न सकउं पहचीअ ॥८॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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