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डिसेम्बर २०११
विद्वानोनो काव्यविनोद
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उपा. भुवनचन्द्र
‘अनुसन्धान’मां जैन श्रमणो द्वारा रचित संस्कृत - प्राकृत पद्यरचनाओ प्रगट थती रहे छे. आ रचनाओमां प्रभुभक्ति-धर्मनिष्ठानां दर्शन थाय छे, एम जैन श्रमणोनी विद्वत्ता तथा साहित्यप्रीतिनां पण दर्शन थाय छे. जैन ग्रन्थभण्डारोमां एवी पण रचनाओ मळे छे जेमां श्रमणोनो काव्य - शास्त्र विनोद मुखर थतो होय छे हस्तलिखित प्रकीर्ण पत्रोमांथी प्राप्त थयेल आवी काव्यविनोदलक्षी चार रचनाओ अहीं प्रस्तुत करी छे.
'श्रुतिकटुश्लोक' अने तेनी व्याख्याना कर्तानुं नाम पत्रमां उल्लेखित नथी. श्लोक जैनेतर कविनो रचेलो होय सम्भवित छे परंतु तेनी व्याख्या जैन मुनि रचित होवानो पूरेपूरो सम्भव छे, केमके समस्यावाळा श्लोको ए ज पत्रमां छे अने ए जैन श्रमणनी ज रचना छे. बन्नेमां तीर्थङ्करोनो उल्लेख छे. कर्तानो उल्लेख नथी. आ त्रणे कृतिओ एक पत्रमां छे. वर्णमालाना अक्षरो वडे रचायेलो श्लोक अन्य पत्रमां छे. श्लोक अने टीका बन्नेना कर्ता पं. लक्ष्मीकल्लोल गणि छे. एमनी अनेकार्थी अन्य रचना ही. र. कापडियाए नोंधी छे. एमनो समय वि.सं. १६०० पण 'जै.सा.सं. इतिहास' मां नोंधायो छे. उपलब्ध प्रकीर्ण पत्र जो के १८ मा शतकनुं जणाय छे.
श्रुतिकटु श्लोक
आ श्लोक तेना नाम प्रमाणे कर्णकटु छे अने अर्थहीन पण लागे छे, परंतु ते व्याकरणसिद्ध रचना छे. सन्धि- समास - तद्धित-शब्दकोशनो युक्तिभर्यो विनियोग करीने कविए कर्णकठोर वर्णविन्यास सिद्ध कर्यो छे. विवरणनी सहाय विना आ श्लोक समजवो सामान्य अभ्यासी माटे शक्य नथी. शिवनी स्तुतिरूपे रचायेला श्लोकना कर्तानो उल्लेख नथी. विवरणकर्तानुं पण नाम नथी.
समस्या
८ श्लोक अने ५ श्लोकोनी बे रचनाओ समस्या - पादपूर्तिरूप छे.