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________________ डिसेम्बर २०११ प्रयोज्यो छे ते अयोग्य ठरे. तेथी उमरवाडीनी प्रतिष्ठा तो कल्पी शकाय तेम नथी. तेने बदले अन्य कोई पार्श्वनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा थई हशे एम ज मानवू पडशे. छठ्ठो तथा सातमो श्लोक पार्श्वनाथ भगवाननी स्तुतिरूपे छे. सिद्धवधूने परणवाने माटे [चोरी]मण्डपसमान शुभ एवा मुख्य प्रासादमां भव्यजनोना वृन्दने बोलाववा कुकुमथी युक्त पत्रिका समान आ जिनगृहनी प्रशस्ति माणिक्यना पुत्र पानाचंदनी अभ्यर्थनाथी मारा वडे (कवि वडे) करायानुं कवि नवमा श्लोकमां लखे छे. अहीं जिनगृह शब्द फरी एक प्रश्न ऊभो करे छे के शुं आ स्वतन्त्र चैत्य हशे के जेनी आ प्रशस्ति छे ? आ वात पण अहीं बंधबेसती नथी. कारण आगळनी जेम अहीं काव्यमां वपरायेलुं 'प्रासादमुख्ये' ए पद पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा मुख्य प्रासादमां ज स्थापना कराई छे एम जणावे छे. कदाच जिनगृह शब्दनो अर्थ देवकुलिका एवो करिए तो आ देवकुलिकानी प्रशस्ति होय ते शक्य पण बने. जो के अमे अहीं अमारा विचारो रजू कर्या छे. कदाच अन्य कोइ वातने पुष्ट करतां प्रमाणो मळी आवे तो वात जुदी. अन्त्य श्लोकमां कविए पोताना गच्छनो. तेमज गुरुना नामनो सामान्य परिचय आप्यो छे. कर्ता विशे के तेमनी परम्परा इत्यादिना सम्बन्धमां कशी नोंध मळती नथी. प्रत परिचय : प्रत प्रायः १९मी सदीना पूर्वार्धमां ज लखाई हशे एम प्रत जोतां अनुमान थाय. प्रतना अक्षरो स्पष्ट तेमज मोटा छे. प्रतना पानामां १२ पङ्क्ति छे. मोहनलालजी भण्डारनी प्रस्तुत झेरोक्ष प्रत संशोधनार्थे आपवा बदल भण्डारना व्यवस्थापक (सूरत)नो आभार. श्रीउम्बरवाडिपार्श्वनाथ प्रशस्ति ॐ श्रीपार्श्वजिनेश्वराय जगतां पूज्याय सिद्धात्मने, सत्त्वानामभयप्रदाय भविनां क्षेमकराय प्रभो ! । कौघोत्कटहस्तियूथमथने सिंहाय पापच्छिदे, देवेन्द्रामरवन्दिताय सततं तुभ्यं नमोस्त्वर्हते ॥१॥ रोगाग्न्यब्धिमृगेन्द्रपन्नगगजक्षोणीशयुद्धोद्भवां, भीति नाथ ! निवारयाऽऽश्वसमुतां, तेषां कृपावारिधे !।
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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