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डिसेम्बर २०११
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के शिष्य रामचन्द्र द्वारा वि.सं. १४९० में लिखी गई एक लघुकृति है। इसकी अनेक प्रतिया विभिन्न भण्डारों में उपलब्ध है। वेबर
ने इसे १८७७ में बलिन से इसे प्रकाशित भी किया हैं। (५) पञ्चदण्डात्मक विक्रमचरित्र नामक अज्ञात लेखक की एक अन्य
कृति भी मिलती है । इसका रचनाकाल १२९० या १२९४ है। पञ्चदण्ड छत्र प्रबन्ध नामक एक अन्य विक्रमचरित्र भी उपलब्ध
होता है, जिसके कर्ता पूर्णचन्द्र बताये गये है। (७) श्री जिनरत्नकोश की सूचनानुसार - सिद्धसेन दिवाकर का एक
विक्रमचरित्र भी मिलता है । यदि ऐसा है तो निश्चय ही विक्रमादित्य के अस्तित्व को सिद्ध करने वाली यह प्राचीनतम रचना होगी । केटलागस केटलोगोरम भाग प्रथम के पृ.सं. ७१७ पर इसका निर्देश उपलब्ध है । यह अप्रकाशित है और कृति के उपलब्ध होने पर ही इस सम्बन्ध में विशेष कुछ कहा जा सकता है। इसी प्रकार 'विक्रमनृपकथा' नामक एक कृति के आगरा, एवं कान्तिविजय भण्डार बडौदा में होने की सूचना प्राप्त होती है । कृति को देखे बिना इस सम्बन्ध में विशेष कुछ कहना सम्भव नहीं है। उपरोक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त 'विक्रमप्रबन्ध' और विक्रम प्रबन्ध कथा नामक दो ग्रन्थों की और सूचना प्राप्त होती है । इसमें विक्रम प्रबन्धकथा के लेखक श्रुतसागर बताये गये है। यह ग्रन्थ
जयपुर के किसी जैन भण्डार में उपलब्ध है । (१०) विक्रमसेनचरित नामक एक अन्य प्राकृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थ
की भी सूचना उपलब्ध होती है । यह ग्रन्थ पद्मचन्द्र किसी जैनमुनि के शिष्य द्वारा लिखित है । पाटन केटलोग भाग १
के पृ. १७३ पर इसका उल्लेख है । (११) विक्रमादित्यचरित्र नामक दो कृतियाँ उपलब्ध होती है, उनमें
प्रथम के कर्ता रामचन्द्र बताये गये हैं। मेरी दृष्टि यह कृति वही