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अनुसन्धान-५७
सेअरूल ओकूल (पृ. ३१५) का दिया था जिसमें विकरमतुन के उल्लेख पूर्वक विक्रम की यशोगाथा वर्णित है । इस ग्रन्थका काल विक्रम संवत् की चौथी - पाँचवी शती है । यह हिजरी सन् से १६५ वर्ष पूर्व की घटना है ।
इस प्रकार विक्रमादित्य (प्रथम) को मात्र काल्पनिक व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है । मेरी दृष्टि में गर्दभिल्ल के पुत्र एवं शकशाही से उज्जैनी के शासन पर पुनः अधिकार करने वाले विक्रमादित्य एक ऐतिहासिक व्यक्ति है, इसे नकारा नहीं जा सकता है । उन्होंने मालव गण के सहयोग से उज्जैनी पर अधिकार किया था । यही कारण है कि यह प्रान्त आज भी मालव देश कहा जाता है ।
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(१३) जैनपरम्परा में विक्रमादित्य के चरित्र को लेकर जो विपुल साहित्य रचा गया है, वह भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि किसी न किसी रूप विक्रमादित्य (प्रथम) का अस्तित्व अवश्य रहा है । विक्रमादित्य के कथानक को लेकर जैन परम्परा में निम्न ग्रन्थ रहा है । विक्रमादित्यके कथानक को लेकर जैन परम्परा में निम्न ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं (१) विक्रमचरित्र यह ग्रन्थ काशहृदगच्छ के देवचन्द्र के शिष्य देवमूर्ति द्वारा लिखा गया है । इसकी एक प्रतिलिपि में प्रतिलिपि लेखन संवत् १४९२ उल्लेखित है, इससे यह सिद्ध होता है यह रचना उसके पूर्व की है । इस ग्रन्थ का एक अन्य नाम सिंहासनद्वात्रिंशिका भी है । इसका ग्रन्थ परिमाण ५३०० है । कृति संस्कृत में है ।
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(२) विक्रमाचरित्र नामक एक अन्य कृति भी उपलब्ध है । इसके कर्ता पं. सोमसूरि है । ग्रन्थ परिमाण ६००० है ।
(३) विक्रमचरित्र नामक तीसरी कृति साधुरत्न के शिष्य राजमेरु द्वारा संस्कृत गद्य में लिखी गई है । इसका रचनाकाल वि.सं. १५७९ है ।
(४) विक्रमादित्य के चरित्र से सम्बन्धित चौथी कृति ‘पञ्चदण्डातपत्र छत्र प्रबन्ध नामक है । यह कृति सार्धपूर्णिमा गच्छ के अभयदेव