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डिसेम्बर २०११
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सोपारकपत्तन (हालतुं ठाणे जिल्ला- नाला-सोपारा) एक महत्त्वनुं नगर हतुं एम वारंवार मळी आवता ऐतिहासिक उल्लेखो परथी जणाय छे. हालमां त्यां कोई प्राचीन जिनालयना अवशेषो पण नथी, परंतु पूर्वे त्यां भव्य तीर्थरूप जिनालय हतुं एम स्तोत्रसाहित्य अने अन्य उल्लेखो परथी सिद्ध थाय छे. आजे त्यां एक भग्न किल्लो छे, एक मोटो टिंबो छे. ए टिंबा नीचे अवशेषो होय पण खरा. प्रस्तुत अंकमां सोपारक नगरना आदिनाथ प्रभुनी स्तवनारूप बे कृतिओ प्रकाशित थई छे. सम्पादकोए सोपारकनगर सम्बद्ध माहितीनी पूर्ति करवा साथे कृति तथा कर्ता विशे ऊहापोह पण को छे. बीजी कृति'सोपाराविज्ञप्तिका'मां सोपारकनगरनी आसपास वनश्रीनी विपुलतानुं वर्णन जे थयुं छे वास्तविक छे. आ पंक्तिओना लेखकनुं बचपण नालासोपारामां वीत्यु छे. केळांनी वाडीओ अने करमदांनां झुंड पुष्पळ प्रमाणमां त्यारे पण हता.
बे स्तुतिनी श्री गुणविनय कृत टीका सुन्दर छे. सम्पादकोए अभयदेवसूरि खरतरगच्छना न हता एवा विधानना टेकामां एक प्राचीन प्रतिमालेख टांक्यो छे परंतु ते लेखवाळा प्रतिमाजी क्यांना छे अथवा क्या पुस्तकमांथी ए लेख उद्धृत को छे ते नोंध्युं नथी- जे नोंध आपवी जरूरी गणाय.
_अमदावादमा टंकशाळ विस्तारमा आवेला श्रेयांसनाथ भ० ना जिनालयना निर्माण-प्रतिष्ठानो ऐतिहासिक रास बहु रसप्रद छे. शेठ हठीसिंह-शेठाणी हरकुंवर जेवा श्रावकोनी भावना, ऐश्वर्य, मोभो वगेरेनी तेमज अमदावादनी त्यारनी परिस्थिति, कम्पनी सरकारनो वहीवट वगेरेनी जाणकारी आमां मळे
'गुणकित्त्व षोडशिका' व्याकरणप्रेमीओ माटे रसथाळ समान छे. 'मूरीबाइ तेरमासो'मां एक त्यागी-तपस्वी आर्याना सुन्दर गुणग्राम जोवा मळे छे. मास ११,क. ४मां 'सर्पनुं खोखं' शब्द छे, सम्पादिकाए, तेनो अर्थ 'सर्पनी कांचळी' को छे, परंतु एनो अर्थ 'सापर्नु खोखलुं थई गयेलुं शरीर' एवो करवो जोईए एम लागे छे.
___'प्रकीर्ण स्तवनो'मा अन्तिम स्तवनमा ‘चिरयछि' शब्द छे, तेनो अर्थ कीरमजी (एक जातनुं कापड़) एवो लख्यो छे. आ ज स्तवननी एक अन्य प्रत ते पछी मळी तेमां 'चिरमठि' शब्द छे. मगनभाई देसाईना 'हिन्दी-गुजराती