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________________ १०० अनुसन्धान-५७ १६. शीतल, सुखद अने सुरभित पवनथी चारे बाजुनी अंक योजन जेटली जमीन स्वच्छ थइ जाय छे. (नं. २८) १७. झीणां फोरां वाळी वृष्टि द्वारा धूळ, रजकण व. दूर थइ जायछे. १ १८. जलज अने स्थलज, पांच वर्णना अने ऊर्ध्वमुख पुष्पोनो जानुप्रमाण ढगलो थाय छे. (नं. ३१) १९. अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप अने गन्धनो अभाव थाय छे. (X) २०. मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, अने गन्धनो प्रादुर्भाव थाय छे. २ (X) त्यारबाद भगवानना अन्य व्यक्तिओ पर के प्रकृति पर प्रभाव दर्शावनारा १४ अतिशयो समवायाङ्गजीमां नोंधाया छे २१. भगवाननो स्वर हृदयाह्लादक अने योजनगामी होय. २२. भगवान अर्धमागधी भाषामां देशना आपे. २३. ते अर्धमागधी भाषा आर्य अने अनार्य मनुष्यो, पशु, पक्षी, सरीसृप - सर्वेने पोतानी हितकारी, कल्याणकारी अने सुखद भाषापणे परिणमे. (देशनाने लगता आ त्रणे अतिशयोनो समावेश अत्यारे एक ज अतिशयमां करवामां आवे छे. (जुओ नं. ६) २४. पूर्वे जेओने वेर बंधायेलुं छे तेवा देवो, असुरो, नागकुमारो, सुपर्णकुमारो, यक्षो, राक्षसो, किंनरो, किंपुरुषो, गरुडो, गन्धर्वो अने महोरगो; अर्हत्ना चरणोमां प्रशान्त मन वाळा थइने धर्म सांभळे छे. (नं. ९) २५. अन्यतीर्थिको पण भगवानने वन्दन करे छे. ४ (X) २६. अन्यतीर्थिको भगवाननो प्रतिवाद नथी करी शकता. (X) १. टीकाकारे आ अतिशयने 'गन्धोदकवर्षा' ओवा नामे ओळखाव्यो छे. २. टीकाकार जणावे छे के आ १९-२० अतिशय बृहद्वाचना मुजब छे. स्वसम्मत अतिशयो आछे १९. भगवान ज्यां बेसे ते स्थान कालागुरु व. धूपनी सुगन्धथी मघमघायमान बनी जाय छे. २०. भगवाननी बे बाजुओ बे यक्षो चामर ढाळे छे. ३. टीकाकार ‘सुवण्ण’नो अर्थ 'ज्योतिषिक' अने 'गरुल' नो अर्थ 'सुपर्णकुमार' करे छे. ४. टीकाकारे आ बे अतिशय माटे आवी नोंध करी छे - "बृहद्वाचनायामिदमन्यदतिशयद्वयमभिधीयते" पण आवी नोंध कर्या पछी अन्य वाचनामां आ बेनी जग्याओ शुं हतुं ते दर्शावता नथी.
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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