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डिसेम्बर २०११
३०. सुगन्धी पाणीनी वृष्टि थाय. ३१. पंच वर्णनां पुष्पोनी वृष्टि थाय. ३२. वाळ, दाढी, मूछ अने नख न वधे. ४३३. ओछामां ओछा १ करोड देवो भगवाननी सेवामां रहे. ३४. छ) ऋतुओ इन्द्रियोना विषयोने अनुकूल रहे.
हवे आपणे समवायाङ्गमां ३४ अतिशयोनुं जे निरूपण छे तेनी प्रस्तुत प्ररूपणा साथे तुलना करीशुं अने त्यारबाद तेना फलितार्थो विशे विचारीशुं.
समवायाङ्गजीमां सौप्रथम अरिहन्तोना शरीर साथे सम्बन्धित ५ अतिशयोपूर्वोक्त नं. ३२ अने नं. १-४ क्रमशः नोंधाया छे अने त्यारबाद तेओनी विभूति दर्शावनारा १५ अतिशयोनुं वर्णन छे. ६. आकाशमां वर्ततुं के प्रकाशमान' चक्र होय. (तुलना-पूर्वोक्त नं. १६) ७. आकाशमां वर्ततां के प्रकाशमान' त्रण छत्र होय. (नं. १९) ८. प्रकाशमान बे श्वेत चामर होय. (नं. १७) ९. आकाश जेवा स्वच्छ स्फटिक रत्ननुं पादपीठ साथेनु सिंहासन होय.
(नं.१८) १०. अत्यन्त ऊंचो, नानी नानी हजारो पताकाओथी सुशोभित इन्द्रध्वज
भगवाननी आगळ चाले. (नं. २०) ११. ज्यां ज्यां भगवान ऊभा रहे ते बेसे त्यां त्यां यक्षनिकायना देवो पत्र, ___पुष्प अने पल्लवथी लची पडेलुं अने छत्र, ध्वजा, घण्टा तेमज
पताकाओथी सुशोभित अशोकवृक्ष रचे छे. (नं. २४) १२. मस्तकथी थोडाक पाछळना भागमां प्रभामण्डल सर्जाय छे के जे अन्धकारमां
पण दशे दिशाओने प्रकाशित करे छे. (नं. ७) १३. जमीन समतल अने रमणीय बनी जाय छे. (X) १४. कांटा ऊंधा थइ जाय छे. (नं. २५) १५. ऋतुओ अनुकूल बनी जाय छे. (नं. ३४) १. अत्रे 'आगासगं' शब्दना आ बे अर्थो टीकामां सूचवाया छे. २. अत्रे मूळमां 'जक्खा देवा' पाठ छे, तेने अनुसरीने आ अर्थ लख्यो छे, टीकाकार
भगवन्ते तो 'तक्खणादेव' ओवो पाठ स्वीकारीने 'तत्क्षणमेव' ओवो अर्थ को छे.