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अनुसन्धान-५७
हवे प्रस्तुत गाथानी पूर्वनी गाथामां तद्भवमरण कोने होय ते जणाव्युं छे"मोत्तुं अकम्मभूमग नरतिरिए सुरगणे अ नेरइए । सेसाणं जीवाणं तब्भवमरणं तु केसिंचि ॥" (उ.नि. ५.१५)
(अकर्मभूमिज-युगलिक मनुष्य-तिर्यंचो, देवो अने नारकोने छोडीने शेष जीवोमां तद्भवमरणनो सम्भव छे अने अमांथी केटलाकने ते मळे छे.)
अने ते पछीनी प्रस्तुत गाथामां अन्य मरणो विशे पण सरखी ज वात होवाथी साथे ने साथे कही दीधी छे
"मोत्तूण ओहिमरणं, आवीची आइयं तु तं चेव ।
सेसा मरणा सव्वे, तब्भवमरणेण णेयव्वा ॥" हवे आपणे जोई गया छीओ के युगलिक व.ने जेम तद्भवमरण नथी संभवतुं तेम आवीचि, अवधि अने आत्यन्तिक सिवायनां अन्य मरणो पण नथी संभवतां. माटे आ गाथामां जो 'आइयं तु तं' ने स्थाने सहेज सुधारीने 'आइयंतितं' (-'आत्यन्तिक', 'त' श्रुति धरावतुं प्राकृतीकरण) करी दइओ तो आ गाथानो स्पष्ट अर्थ समजाय छे के अवधिमरण, आवीचिमरण अने आत्यन्तिकमरणने छोडीने शेष मरणो विशे तद्भवमरण प्रमाणे जाणवू. मतलब के जेम तद्भवमरण युगलिक व.ने नथी होतुं तेम आ त्रण सिवायनां अन्य मरणो पण आ जीवोने नथी होतां तेम समजवू.
बनी शके के श्रीशान्तिसूरिजी महाराज सामे 'आइयं तु तं' पाठ होय अने तेथी तेओए आ गाथाने अस्पष्ट अने उपेक्षणीय गणावी होय. नियुक्ति पञ्चकना अनुवादक-सम्पादकनी स्खलना तो आ अशुद्ध पाठने लीधे ज थइ छे. पण जो आपणे एने बदले 'आइयंतितं' अम सुधारी लइओ तो आ गाथा स्पष्ट अने उपयुक्त बनी रहे छे.
__ [आ अंकना प्रूफवाचन दरम्यान, उत्तराध्ययन नियुक्तिनी पाटणभण्डारनी ताडपत्र प्रतिना पाठ मेळववानुं बन्युं तेमां प्रस्तुत गाथा पण जोवा मळी छे, अने तेमां 'आइयंतियं' एवो स्पष्ट पाठ छे. आथी उपरनो ऊहापोह साची दिशानो होवा- प्रमाणित थाय छे.]