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________________ अनुसन्धान-५६ Ind ते देखी रे, सुर सहु अनमेखिक थया सुरनां सुख रे, दुःख करीने तिणे लेखव्यां । वर नरभवे रे, धन्य करी मांन्यो खरे नरभवनी रे, देखी देव इच्छा करे ॥१७॥ करे इच्छा अन्य जण पिण महोत्सव देखीने धन धन श्रावकधर्म एहवो अपरथी कहो किम बने ! इणि छबीथी नयरमां फिरी गयां माणिक चोकमां एम उत्सव को मोटो सुजश वाध्यो लोकमां ॥१८॥ घेर आवी रे, वारु कीध प्रभावना श्रीफलनी रे, शुद्ध पतासां सोहामणां । साहामीवत्सल रे भाव थकी कीधो वली रे खींनखापनी रे दीधी उभय भली कोथली ॥१९।। कोथल्यो दीधी शोभ लीधी चिनाई प्याला फिरी रत्नत्रयी-शुद्धिने काजे त्रिण प्रभावना करी । तिण समे तपगच्छतणां मंडण श्रीदेवेन्द्रसूरीश्वरु चउमास ठायो राजनयरे पंडितां अलवेशरु ॥२०॥ तिहां राख्यां रे, संघ बहु आग्रह करी ठवणामां रे, शेठाणी हर्षे करी । तेने तेड्यां रे, ढोल निशांण सू राजते वासखेपनां रे, मंत्र सहित करी छाजतें ॥२१।। छाजते श्रीसंघ चउविधि सवि देश विदेशमां करो एहवां काम उत्त्यमा ना पडो संक्लेशमां । श्रीजिनप्रतिष्ठा तपोत्सव विधि करी छे हुंसे घणी वरणतां तो पार न आवे लेश भेरवचंद भणी ॥२२॥ ढाल ८मी ॥ लालगुलाल आंगी बनी रे- ए देशी ॥ सोरठा ॥ - - - - - - - - - - - - - निसूण्यो पूर्वसम्बन्ध तेहथी शेठाणी कर्यो ॥१॥१ १. सोरठानो पूर्वार्ध लखवानो रही गयो लागे छे.
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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