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निवेदन
संशोधन एटले सम्मार्जन. संस्कृत शब्दकोश प्रमाणे, कचरो साफ करनार ‘सावरणी’ने ‘सम्मार्जनी' कहेवामां आवे छे. " सम्मार्जनी शोधनी स्यात्" (अमरकोष). अर्थात् जे शोधन करे ते सम्मार्जनी; सम्मार्जन एटले शोधन; शोधन तेज संशोधन.
आ सम्मार्जन विविध रीते थतुं होय छे. आपणे ए रीतो विषे समजवानो प्रयत्न करीशुं.
१. क्यारेक, खरेखर तो मोटा भागे, अभण अथवा विषयथी अपरिचित एवा प्रतिलेखक-लहिया खोटा पाठो के अक्षरो लखी देता होय छे. वाचक, अध्येता अथवा सम्पादक, जे ते विषयनो जाणकार होय, अने ग्रन्थनी भाषानो पण अभ्यासी होय, तो तेने आ खोटा पाठ / अक्षर ध्यानमां आवी जाय छे, अने ते तेनुं सम्मार्जन करतो होय छे. आमां, ज्यां प्रगटपणे के स्पष्ट रीते खोटो पाठ/अक्षर लखायो होय त्यां तो तेने बदले शुद्ध- साचो पाठ / अक्षर सीधेसीधो ज लखी देवानो होय. जेमके 'वीतराग' लखायुं होय तो त्यां 'वीतराग' एम वांचवं अने एम लखवुं उचित गणाय. अने ज्यां भूलभरेला पाठ / अक्षर लखाया होय त्यां, साचा जणाता पाठ ( ) आवा गोळ कौंसमां लखवा पडे. दा.त. 'प्रतिपन्थिनम्' एवो पाठ प्रतमां देखातो होय, त्यां जरूरी के उचित पाठ ' परिपन्थिनम्' होवानुं नक्की थाय; तो त्यां ‘प्रति ( परि ) पन्थिनम् ' आ रीते पाठशुद्धि करवामां आवे छे. अने क्यांक जो कोई पाठ/ अक्षर छूटी गयो होय, तो ते [ ] आवा कौंसमां उमेरीने