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________________ १७४ अनुसन्धान-५६ विहंगावलोकन - उपा. भुवनचन्द्र अनु० ५५मां आ. शीलचन्द्रसूरि द्वारा सम्पादित सातेक कृतिओ प्रकाशन पामी छे. प्रत्येक कृति तेनी रचनानी दृष्टिए अथवा तेना विषयनी दृष्टिए ध्यानार्ह छे. श्रमणोनी सर्जकता केवी फलद्रूप हती अने तेमनो विद्याव्यासङ्ग केवा अवनवा रूपे सर्जकतामा परिणमतो हतो ए वात आ अंकनी कृतिओनुं वैविध्य जोतां स्पष्ट थाय छे. विद्वानोने अने विद्यार्थी वर्गने रुचिकर थाय एवी आ सामग्री छे. नन्दीश्वर स्तोत्रनी २४मी गाथामां 'पुणो वि(?)' छे त्यां 'वि' लहियानी भूलथी आव्यो जणाय छे. पेथडशाहे निर्मित करेलां चैत्योनी सूचि धरावतुं स्तोत्र एक महत्त्वनी उपलब्धि छे. यातायातनी विषमताना ए युगमां पण पेथडशाहनो व्यवहार अडधा भारतमा विस्तरेलो हतो – एवं आ सूचि कही जाय छे. एक रिसर्च पेपर तैयार थाय एटलुं काम आ स्तोत्रमा छे. सूचिमां निर्दिष्ट नगरनामो परथी हालनां नामो शोधवा माटे खासो परिश्रम करवो पडे. ते ते नगरोना इतिहास अने त्यांनां मन्दिरोना इतिहास तपासवानी जरूर छे. ___ श्लो. १५मां बीजा चरणमां केटलाक अक्षरो वधु छे. आ शब्दो कोई विद्वाने टिप्पण तरीके नोंध्या हशे जे पाछळथी लहियाना हाथे मूळ श्लोकमां दाखल थई गया हशे एवं लागे छे. 'जिन' तथा 'श्री नाभि' ए शब्दो काढी नांखता श्लोकनो पाठ बराबर मळी रहे छे. _ 'पार्श्वनाथसहस्रनामस्तोत्र' तथा 'शीलोदाहृतिकल्पवल्ली' - आ बन्ने रचनाओ विस्तृत अने नोंधपात्र छे. शीलोना २०मा श्लोकमां 'रवेर्धर्माः' छपायुं छे त्यां 'रवेर्धर्माः' जोइए. श्लो.२१मां ‘स किल वनहुताशात्' एम वांचवाथी अर्थ बेसी जाय छे. श्लो. ३०मां 'उग्रव्याघ्राः' होवू जोइए. भोजनविच्छित्ति' मां पृ. ५४ (नीचेथी सातमी पंक्ति) 'तिम जानइं' छे, त्यां 'तिमजा नई' एम वांचवू. पृ. ५५ (उपरथी तेरमी पंक्ति) 'पड सुधीनी'
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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