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________________ ओगस्ट २०११ बधा पर्यायोनो ‘कंइक छे' ओवो अव्यक्त बोध थया करे छे. जेम चारे तरफथी ढंकायेली पालखीमां बेठेली व्यक्तिने बहार कंइक छे ओवो ख्याल आवे छे, पण शुं हशे तेनो ख्याल नथी आवतो; अथवा तो जेम ते ज दिवसना जन्मेला बाळकने वस्तुने जोवा छतां ते शुं हशे तेनो ख्याल नथी आवतो; तेम आ अवस्थामां पण बोध अव्यक्त ज रहे छे पण पहेलेथी ज स्पष्ट बोध नथी थतो. (जेम समय जोवा माटे घडियाळ सामे जोइओ तो पहेलां तो घडियाळ, तेना आंकडा, तेना कांटा, घडियाळ जे दिवाल पर लगाडेली होय ते दिवाल व. ओकसाथे सामान्यपणे देखाय छे अने थोडीवार पछी समयनो ख्याल आवे छे.) आम स्पष्ट बोध थतां पहेलां अस्पष्ट बोधात्मक अवस्था अनिवार्यपणे सर्जाय छे. अने माटे स्पष्टबोधात्मक ज्ञान पूर्वे अस्पष्टबोधात्मक दर्शन अनिवार्य बने छे. जे फक्त जोयुं होय तेनी स्पष्ट स्मृति लगभग नथी थती, पण जे जोवा साथे जाण्युं पण होय तेनी स्पष्ट स्मृति थइ शके छे. भगवानना दर्शन करीने आव्या पछी 'मूर्तिने माथे मुगट हतो के नहीं ?' अवुं कोई पूछे तो आपणने कोईक वार जवाब नथी आवडतो; कारण के आपणे मूर्ति सामे जोयुं हतुं, पण ध्यानथी नहीं. आ ध्यानथी जोवुं अ ज साकार अवस्था - ज्ञान. अने ध्यान वगर जोवुं अ ज निराकार अवस्था - दर्शन. दर्शनने आ रीते पण (स्मृतिना अजनकत्वने लीधे) अव्यक्त गणी शकाय. १५७ आ ज रीते मनथी थतो द्रव्य - पर्यायनो साक्षात्कार मानसदर्शन कहेवाय छे. दर्शन शब्दना मूळ अर्थ 'जोवुं 'नो आ अर्थविस्तार छे. मानसदर्शन शास्त्रोमां 'अचक्षुर्दर्शन' गणाय छे. चक्षुथी जोवुं ते चक्षुर्दर्शन अने चक्षु वगर जोवुं ते अ-चक्षुर्दर्शन ओवो अत्रे भाव छे. अन्य ४ ज्ञानेन्द्रियो - श्रोत्र, घ्राण, रसना अने त्वचामां पण अवश्य निराकार स्थिति सर्जाती ज होय छे, जेम के श्रोत्रमां ओक साथे घणी बधी जातना अवाजना पुद्गलो अथडाता ज होय छे अने ते वखते ते तमाम पुद्गलोनो अस्पष्ट बोध थया ज करतो होय छे; परन्तु आ निराकार अवस्था ‘दर्शन' नथी गणाती, कारण के तेमां वस्तुनी आपणे सामी उपस्थिति नथी १. अचक्षुर्दर्शनमित्यत्र नञः पर्युदासार्थकत्वादचक्षुर्दर्शनपदेन मानसदर्शनमेव ग्राह्यम्, अप्राप्यकारित्वेन मनस एव चक्षुः सदृशत्वात् - ज्ञानबिन्दु ।
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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