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________________ ९४ अनुसन्धान- ५६ कर जोरी कहुं धरमी सजनां, सूणीयो अरज चित्त लाय जी । भोलपमें गुणवंत सुज्ञानी, काल व्यतीतो जाय जी ॥२॥ सेवो० ॥ छीजत छीनछीन आयु सदा हि, अंजलिजल जिम पीतजी । कालचक्र त (ते) रे शीश भमत हे, सौवत कहा तुं अभीतजी ||३|| से० ॥ समय मात्र परमाद निरंतरे, धर्मसाधना मांहि जी । अथिर रूप संसार लखीने, सज्जन करीये नाहिं जी ||४|| से० ॥ मेरामेरा म करो वल्लभ, तेरा हे नहि कोईजी । भ्राताजी परिवारतणां ए, मेला हे दीन दोय जी ॥५॥ से० ॥ तन धन जोबन अथिर कारमा, संध्यारंग समानो जी । सकल पदारथ छे संसारिक, स्वप्नरूप चित्त जानोजी ॥६॥ से० ॥ एसा भव निहारीने नित्य, कीजे ज्ञानविचारजी । न मीटे ज्ञानविचार विना कछू, अंतरभावविकारजी ||७|| से० ॥ भव परिभ्रमण करतां तुजने, मुशकिल मिलियो छे वेतजी । हिये समज कछु हो तुमारे तो, चेत शके तो चेतजी ॥८॥से० ॥ धन धन शेठ हठीसिंह संघमां, धन धन जसू घर नारीजी । धन धन राजनयरनां श्रावक, शासननां हितकारी जी ॥९॥ से० ॥ शेठ प्रेमाभाई तिलक ते पुरनो, उभय उंमाभाई जाणोजी । सिंघभाई पुन शेठ श्रीमाली, मगनभाई परि (र)माणोजी ॥१०॥ से०॥ सूत्र सिद्धांतनां जाण सुबुद्धी, श्रीजिनपडिमाना रागीजी । निवड निपुण धोरी जिनमतनां, दृढरंगी बडभागीजी ॥११॥ से० ॥ सकल संघ जयवंत प्रवर्तो, राजनयरनो विशेषोजी । आजने काले शासन दीपावे, मन धरी अधिक जगीशोजी ॥ १२ ॥ से० ॥ में पण सुजश सुण्यो ए पुरनो तेहवुं परतीक्ष दीतुं जी । शर्कर पय मिश्रितथी अधिको, लागो मूजने मीठं जी ॥१३॥से०॥ धर्मघोषसूरिनां गच्छमांथी, निकसी साखा सुराणो जी । दोलतचंद शीश मोतीचंद, शिष्य भेरवचंद जाणोजी ||१४|| से०॥ संवत नंद शशी पण इंदू (१९१५), भाद्रव कृष्ण सुमासोजी । तिथि एकादशमी गुरुवारे, विरच्यो संघविलासो जी ||१५|| से० ॥
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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