SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-५५ वाचक सकलचन्दगणिनिर्मितं श्रीपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ (अजितशान्तिच्छन्दोरीत्या) - शी. उपाध्याय श्रीसकलचन्द्रगणि ए १६मा-१७मा शतकना एक विलक्षण विद्वान्, कवि-सर्जक अने त्यागतपोमूर्ति साधु छे. तेमनी प्राकृत, संस्कृत अने गुजराती भाषानी अनेक रचनाओ उपलब्ध छे, प्रसिद्ध पण. 'अनुसन्धान'ना अंकोमां पण तेमनी विविध रचनाओ प्रकाशित थई छे. तेमनी एक नवतर अने विशिष्ट एवी काव्यरचना अत्रे प्रगट थाय छे. जैनोमां व्यापकपणे गवाता अजित-शान्तिस्तोत्रनी रीतिए, परन्तु ३० ज गाथा (श्लोक) प्रमाण अने विचित्र छन्दोमां रचाएल आ स्तोत्रनो विषय श्रीपार्श्वनाथप्रभुनी स्तवना छे. नीवडेल कविने ज सुलभ पदावली, रचनाप्रौढि, प्रसाद-मधुर अने समास-प्रचुर छतां सरल शैली, आ बधुं प्रथम नजरेज सहृदयोने आकर्षे छे. सामान्यतः ‘अजितशान्ति'नी अनुकृति प्राकृतमां ज थती रही छे. अहीं कर्ताए संस्कृतमां रचवा- पसंद कर्यु छे. छन्दो सामान्यतः अजितशान्तिना ज लागे, परन्तु तेमां पण कवि-प्रतिभाना चमकारा जडे ज छे. दा.त. पांचमो श्लोक, तेमां बे छन्दोनो संयुक्त प्रयोग छे; उपजातिनो नवलो प्रकार ! तो १५मा तथा २१मा पद्योमां 'घटितगद्यविशेषक' एवा नामथी विलक्षण छन्द-प्रयोग कविए को छे. बे-एक ठेकाणे तूटेल पाठांशने बाद करतां रचना सम्पूर्ण छे. ३०मा पद्यमां कविए पोतानुं नाम तेमज पोताना गुरु 'विजयदानसूरि'नुं नाम पण दर्शाव्युं छे. प्रान्ते पुष्पिका छे, तदनुसार सं. १८२४मां दानसौभाग्य नामना मुनिवरे आ स्तोत्रनी प्रत लखी छे. वर्षों पूर्वे आनी नकल करावी राखी हती, पण तेनुं मूळ पार्नु हवे उपलब्ध नथी, तेथी ते कया भण्डारनी प्रति होय ते नोंधवानुं शक्य नथी.
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy