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अनुसन्धान- ५५
आसपास कल्पना-किंवदन्तीओनुं सर्जन थाय ए पण एक मानवसहज वास्तविकता छे. शीलचन्द्रसूरिजीए हेमचन्द्राचार्य विषयक आवा अपप्रचार अने कल्पनाओनी सविगत तथा साधार चर्चा करी भ्रमजाल दूर करवानो प्रशस्य प्रयत्न कर्यो छे. अपप्रचार के महिमावर्धक किंवदन्तीओ वांची - सांभळी आपणे तेनाथी ओझपाई/ हरखाई जवानुं नथी, परंतु तथ्यो तपासवां जोईए. सामान्य वाचक पोते तथ्यो शोधवा न जई शके, ए तो विद्वज्जनोनुं काम छे. लेखक आचार्यश्रीए ए फरज बजावी छे.
कांतिभाई बी. शाहना ‘नेमिरंगरत्नाकर' उपरना आस्वादलेखमां म.गु. कृतिओना सम्पादनकार्यमां ध्यानमा राखवा जेवा घणा मुद्दा छे. म. गु. भाषानी कृतिओनुं सम्पादन संस्कृत - प्राकृतनी सज्जता करतां कंइक अलग ज प्रकारनी सज्जता मागे छे. आ भाषाना पाठनुं संशोधन सावधानी मागी ले छे, कारण के सं.- प्रा. जेवा दृढ, स्थिर नियमो आमां नथी होता. उच्चार / जोडणी सैके सैके अने प्रदेशे-प्रदेशे बदलाता रहे छे. पदच्छेद करती वखते भाषाना तत्कालीन स्वरूप तथा मूलकारना आशयने पकडवो पडे छे.
मुनिश्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजीनो मतिज्ञान विषयक सूक्ष्म चर्चाथी सभर अभ्यासलेख वांचतां एक अध्ययनसभर, तुलनात्मक अने गम्भीर लेख वांच्यानी तृप्ति अनुभवाय छे. मुनिश्रीए आगमिक अने तार्किक एवी बे परम्परानी मान्यताओनी पाछळ रहेला सम्भवित कारणोनी जे विचारणा करी छे ते तेमनी विषयगत ऊंडी समजनी परिचायक छे. लेखना अंते उपसंहारमा चर्चित विषयना निष्कर्षो संक्षेपमां आपवानी परिपाटी छे, ते उपयोगी अने सामान्य वाचक/विद्यार्थीने उपकारक बने छे. प्रस्तुत लेखमां लेखक श्रीए एवो सारांश नथी आप्यो एटलुं खूटे छे.
अन्य विशेषलेखो / संशोधनलेखो पण माहिती अने अध्ययनना परिपाक जेवा छे. हवे सम्पादित कृतिओ पर नजर नाखीए :
श्रीहरिवल्लभ भायाणी द्वारा सम्पादित थयेल १ – १ कृति विशेषांकना बंने भागमां छे. बंने कृतिओ अपभ्रंशकालनी नजीकनी जूनी गुजराती भाषानी छे. प्रथम भागमां प्रकाशित 'तत्त्वविचारप्रकरण' एक सम्पूर्ण रचना छे. पृ. २, पं. ५मां 'आरंभ जु' एम छे त्यां 'आरंभजु' एवो शब्द वांचवानो छे. पृ. ५,