SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेब्रुआरी २०११ ४७ अकवार पुरोहित आलिगे जैनधर्मने हलकुं लगाडवा माटे अम जणाव्यु के "जैन साधुओ मोटा ठाठमाठथी रहे छे ने पोतानी कथा सांभळवाने स्त्रीओने आववा दे छे. ने तेने परिणामे स्त्रीओथी अळगा रहेवानुं तेमणे लीधेलु व्रत भंग थवानो हमेशां सम्भव रहे छे." हेमचन्द्रे तेनो ओवो प्रत्युत्तर आप्यो के "सिंह जीवहत्या करीने मांसनुं भक्षण करे छे ने कबूतर मात्र अनाज खाइने जीवे छे तेटला माटे कबूतर शुं सिंह करतां विशेष पवित्र प्राणी कहेवाशे के? कदी ज नहि. तेम अेक माणस पोताना म्होंमां शुं नांखे छे ने शुं नहि ते अगत्यनुं नथी. माणसना मोंमां जे चीज जाय तेथी ते कंइ अपवित्र थतो नथी. खरी वात ओ छे के माणसना म्होंमांथी जे कंइ बहार नीकळे छे तेथी माणस अपवित्र थाय छे."* पचास वर्षनी लांबी मुदत सुधी राज्य भोगव्या पछी सिद्धराजनो देह ई.स. ११४३मां पड्यो ने देवताओओ तेने पुत्र न आपेलो होवाथी तेनी गादी, तेणे जेने धिक्कारेला अवा पोताना भत्रीजाना पुत्र कुमारपाळना हाथमां गइ. कुमारपाळे गादी पर आव्या पछी पोतानी हकुमतनां पहेलो दश वर्ष तो पोताना राज्यनी उत्तर सरहद पर लडाई चलाववामां गाळ्यां. पण अगियारमे वर्षे आबु पर्वतनी तळेटीओ आवेला ओक विशाळ मेदानमां मोटुं युद्ध लडी दुश्मनोनो भारे पराजय कों ने जाथुकने माटे सघळु शान्त करी पोतानी नगरीमां पाछो ★ श्रीहेमचन्द्राचार्ये जे जवाब आप्यो हतो तेनुं तात्पर्य आ नथी. तेमना कहेवानो मतलब तो ओ हतो के मनुष्यना चारित्र्यघडतरमां आहार करतां मानसिक वृत्तिओ ज मोटो भाग भजवे छे. आलिगे मूकेलो आक्षेप पण जुदा प्रकारनो हतो. जुओ प्रबन्धचिन्तामणिमां (पृ. ८२) नोंधायेलो मूळ संवाद : आलिग - विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो येऽन्येऽम्बुपत्राशिनः, तेऽपि स्त्रीमुखपङ्कजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहं गताः । आहारं सघृतं पयोदधियुतं भुञ्जन्ति ये मानवाः, तेषामिन्द्रियनिग्रहः कथमहो ! दम्भः समालोक्यताम् ॥ हेमचन्द्राचार्य - सिंहो बली द्विरदशूकरमांसभोजी, संवत्सरेण रतमेति किलैकवारम् । पारापतः खरशिलाकणभोजनोऽपि, कामी भवत्यनुदिनं वद कोऽत्र हेतुः ?॥
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy