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________________ अनुसन्धान - ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ मटीने मनुष्यनी देह पाछो ते पाम्यो, अ स्त्रीना जाणवामां कदापि पण आववा पाम्युं नहि. ने ते जाणवानी तेणीओ दरकार पण करी नहि. ' ४६ हेमचन्द्रे आ वार्ता दृष्टान्तरूपे सिद्धराजने कहीने समजाव्युं के “एवी ज रीते हे राजा ! आ सघळा धर्मपन्थो के जेमां तमे गूंचवाया करो छो तेने झाड तळे ऊगेली वनस्पति समान समजो सर्वे धर्मपन्थोनो तमे सत्कार करो ने ते दरेकमां जे कंइ सारुं होय ते तमे ग्रहण करो. तेम कर्याथी ज तमे मुक्तिने पामशो.” सिद्धराजने हेमचन्द्रनो आ बोध बहु व्याजबी लाग्यो. ने ते दिवसथी ते सर्वे धर्मपन्थोना आचार्योनो सत्कार करवामां सम्पूर्ण समानपणुं जाळववा लाग्यो. हेमचन्द्र तथा सिद्धराजने लगती बीजी केटलीक वातो ओवी ज जाणवा जेवी छे. सिद्धराजना दरबारमाना ब्राह्मणो सिद्धराजने हेमचन्द्र तरफ विशेष ममता बतावतो जोइ केटलीकवार बहु गभराता ने रखेने सिद्धराज जैनमत स्वीकारे ओवी तेमने बीक रहेती. ते परथी वारे घडीओ तेओ नवी नवी युक्ति राजा ने हेमचन्द्र वच्चे भिन्नभाव पडाववा माटे वापरवानुं चूकता नहि. अकवार ब्राह्मणोओ राजा पासे जइने ओवी फरियाद करी के "ओक जैन साधुओ चतुर्मुखी देवालयमां नेमिचरित्रनी कथा करतां पोताना जैन श्रोताओने खुशी करवा सारुं केवळ बेहाइथी ओम कह्युं के 'पाण्डवो तो जैन धर्मी हता. " ओम जणावी ब्राह्मणो बोल्या के " आप राजाजी ब्राह्मणोनुं प्रतिपालन करवावाळा छो ने शिवना भक्तिमान पूजारी छो. ते महाभारतना अतिपवित्र पुस्तकमांना पाण्डवोने आ जैन साधु आ तमारी ज नगरीमां जैन होवानो गपाटो फेलावे ते शुं तमे सांखी शकशी ?" राजाओ अकदम हेमचन्द्रने तेडाव्या ने हेमचन्द्र पासे अ वातनो खुलासो मांग्यो. हेमचन्द्रे उपला जैन साधुओ से वात कही ओम कबुल तो कर्युं. पण महाभारतना जुदाजुदा श्लोको टांकी बतावी राजाने कह्युं के “महाभारतमां तो सो भीष्म, त्रणसो पाण्डव, ओक हजार द्रोण ने संख्याबंध कर्ण होवानुं जणाव्युं छे. तो अ सघळामांथी अकाद पाण्डव जैन होय अ शुं बनवा जोग नथी ?" राजाने हेमचन्द्रनो आ खुलासो बराबर लाग्यो ने ब्राह्मणोनी फरियाद तेणे तरत काढी नांखी. हेमचन्द्र आवी रीते पोतानी उच्च प्रकारनी तर्कशक्तिथी ब्राह्मणोने घणीवार हंफाववामां फावी जता हता.
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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