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________________ ३८ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ अंचलगच्छीय-मुक्तिसागरमुनि-कृत थंभण-तीरथमाल स्तवन सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय वि.सं. २००९मां पूज्य श्रीपुण्यविजयजी, श्रीरमणीकविजयजी, श्रीजयभद्रविजयजी व. साधुभगवन्तोओ खंभातनी यात्रा करी हती. तेनी यादगिरीमां तेओना स्नेही श्रीमोहनलाल भोजके खंभातनां जिनालयोने वर्णवती आ कृतिनुं हस्तप्रत परथी लिप्यन्तर करेलुं हतुं. आ लिप्यन्तर तेओना स्वजन श्रीलक्ष्मणभाई भोजक द्वारा श्रीरसीलाबहेन कडीआने मळ्युं हतुं. जे आटलां वर्षोथी तेओनी पासे ज सचवायेलुं हतुं. प्रस्तुत हेमचन्द्राचार्य-विशेषांक माटे तेओओ आ लिप्यन्तर भूमिका अने जिनालयसूचि साथे मोकल्युं हतुं. आ लिप्यन्तर तो थोडंक अव्यवस्थित अने घणे ठेकाणे जल्दी उकले नहीं अवा जूना अक्षरोमां हतुं ज, पण भूमिका अने जिनालयसूचि पण क्षतिपूर्ण हता. तेथी ते सघळु फरीथी लखवानुं थयु. छतांय श्रीरसीलाबहेन कडीआओ आटलां वर्षो सुधी आ कृति साचवी राखी अने वृद्धावस्था तेमज नादुरस्त तबियत वच्चे पण यथामति सम्पादन करीने मोकली ते तेओनो विद्याप्रेम सूचवे छे. आ कृति आपणा सुधी पहोंची ते बदल आपणे तेओना खरेखर आभारी छीओ. कृतिना कर्ताओ पोते अंचलगच्छीय अने पुण्यसागरसूरिना शिष्य होवानो निर्देश कर्यो छे, पण पोतानुं नाम स्पष्टतः जणाव्युं नथी. छतां घणी ढाळोना अन्ते प्रयोजायेलो 'मुक्ति' शब्द सहेतुक मूकायो होय अम लागे छे. अने तेथी कर्ता, नाम 'मुक्तिसागर' होय अम कल्पी शकाय. 'अंचलगच्छ दिग्दर्शन'मां बे पुण्यसागरसूरि थया होवानो उल्लेख मळे छ : ओक १७-१८ सदीमां अने बीजा १९मी सदीमां. कर्ता आमांथी कया पुण्यसागरसूरिना शिष्य छे ते संशोधन मागे छे. अंचलगच्छीय पुण्यसागरसूरि-शिष्य मुक्तिसागरमुनिनी अन्य एक कृति 'सूतक-चोपाई' (-रचना सं. १९०६, अनु. ३२ - पृ. २३) मळे छे. ते आ ज मुक्तिसागर होई शके. आ कृति अनुसंधान ३२ अने
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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