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३६
अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
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लेवराइवा - ग्राहयितुम्
दिइं - देहि दवराविवा - दापयितुम्
आणि - आनय
जाणि - जानीहि लेणहार - जिग्रहिषु
वखाणि - व्याख्याहि करणहार - चिकीर्षु
बोलि - बिहु(ब्रवीहि) वरणहार - वुवूर्षु
ऊठि - उत्तिष्ठ मरणहार - मुमूर्षु
रहि - तिष्ठ सम(स्मरण ?)हार - सुस्मूर्षु मोकलि - प्रहि[णो]तु चरणहार - जिगी(गमि)षु जमि - भु[न]क्तु ऊ[ठ]णहार - उत्तिष्ठासु
जोइ - पश्य रहणहार - तिष्ठासु
॥ इति क्रियासक्षेपः ।। बइसणहार - उपविविक्षु [प]इसणहार - प्रविविक्षु
लाजइ, रहइ, हुइ, जागइ, वाधइ, खूटइ, जाणणहार - जगमुष(जिगमयिषु?) जीवइ, मरइ, सूवि, रमइ, भावइं, शोभई आपणहार - अपायसु(अर्पिपिषु ?) - एते धातवोऽकर्मकाः ॥ देखणहार - द्रष्टव्य(दिदृक्षु) सांभलिउणहार - शुश्रूषु
दोहि - दोग्धि बोलणहार - विवक्षु
मागइ - याचति(ते) पडणहार - पिपतिषु
रूधइ - रुणद्धि भणहार - बिभणिषु
पूछइ - पृच्छति वखाणहार - व्याचिख्यासु भीख[इ] - भिक्षते चालणहार - चिचलिषु
सीख[व]इ - अनुशास्ति दइणहार - दित्सु
पमाइ - नयति जाणहार - जिज्ञासु
छू(चू)टिवि - चिनोति
इत्यादयो द्विकर्मकाः कीरतातश्च करि - कुरा(रु)
(कीर्तिताश्च) । लइ - गृहाणि(ण)
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