SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डिसेम्बर २०१० १६७ २. पृ. ३७, टि. १, अहीं सं. ने 'दद' प्रयोग असाधु जणायो छे. सामान्य रीते आवी क्षतिने लेखनदोष मानीने 'दद [स्व]' आम पाठ तैयार करवानो होय छे. वृत्तिकारनी भूल छे एवं मानी 'दोषाऽऽविष्टोऽयं प्रयोगः' एवी टि. करवी ते तो धृष्टता ज बनी जाय. 'सम्भव ! सुखं दद त्वं' ए स्तुतिमां ‘दद' प्रयोग जोवा मळे पण छे. ३. पृ. १९५, टि. १ वृत्तिकारे अर्थ स्पष्ट करवा लखेल 'तदेव ध्वान्तं कुमतध्वान्तं' एवं पदगुच्छ सं. ने नथी गम्यु. तेथी तेमणे टि.मां लखी दीधुः 'अयं पाठो निरर्थकः प्रतिभाति'. ए पाठने तेमणे [-] मां छपाव्यो छे ! वृत्तिकारना गुरुजन तेमने आवी टकोर करी शके; आपणे, सदीओ पछी जन्मेला, आवी रीते नोंध करीए तो तेमां विनयहानि अवश्य थाय. ४. पृ. १९८, टि. १. वृत्तिकारे 'श्रीशान्तिदेवता' एवा मूलगत पदनी टीका करतां लख्युं छे के 'अयं श्रीशब्दः पूज्यत्वसूचकः' आ वांचीने भडकी गयेला सं. ए टि. लखी के - 'आगमदृष्ट्याऽयुक्तमिदम्'.... इत्यादि. सं. नुं मन्तव्य छे के कृतिकार एक मुनि छे. शान्तिदेवता ए देवी छे एटले संसारी छे. ते मुनि माटे पूज्य न बनी शके. एटले 'श्री' नो अर्थ 'पूज्य' एवो वृत्तिकारे कर्यो छे ते तेमनी आगमिक भूल छे. आटलेथी न अटकता सं. 'श्री' नो अर्थ पण समजावे छे : श्री एटले ऋद्धि, तेनाथी युक्त शान्तिदेवी - आम अर्थ कराय. ___ एकाङ्गी, विवेकशून्य अने अपरिपक्व दृष्टि, तेमज पोताना छीछरा, ऐदम्पर्यविहोणा बोधनो मोटो अहंकार, मनुष्य पासे केवी चेष्टा, चपलताओ करावे तेनो आ नादर नमूनो ज गणवो पडे. अन्यथा आवी भूलो शोधीने तथा तेने आवी रीते वर्णवीने, पोते मोटी धाड मारी होय ते रीते ठेरठेर ते विषे नोंध लखवानुं दुःसाहस सं. द्वारा न थयुं होत. ___ सं. ने व्याकरणविषयक भूलो बहु झुंचती होय तेम लागे छे; तेमणे काढेली ५२ भूलोमां मोटा भागनी तेवी ज छे. आ परिप्रेक्ष्यमां आपणे सं. महोदयना व्याकरणज्ञाननी वानगी चाखीए : (१) ग्रन्थना मुखपृष्ठ उपर वाक्य छ : 'टीकापञ्चकैरवचूरिषष्ठेन च ग्रथिता". हवे 'टीकापञ्चकेन' एवो प्रयोग तो जाणीतो छ अने मान्य पण.
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy