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________________ डिसेम्बर २०१० संस्कृतना प्रारम्भिक अभ्यासी तथा जैनमन्त्रउपयोगी प्रकाशन. १६५ - तन्त्रना उपासको माटे ९. उवासगदसाओ, हिन्दी अनुवाद अने टिप्पण सहित । सं./अनु. मुनि दुलहराज । प्र. जैन विश्व भारती, लाडनूं । ई. २०१० । १०. जीतकल्प सभाष्य, हिन्दी अनुवाद सहित । कर्त्ताः श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमण, सं./अनु. समणी कुसुमप्रज्ञा । प्र. - जैन विश्व भारती, लाडनूं । ई. २०१० । विस्तृत भूमिका, टिप्पण, पाठान्तरनोंध, परिशिष्टो, विषयानुक्रम व. सम्पादनना तमाम अंगोथी परिपूर्ण आ प्रकाशनो आगमना अभ्यास माटे तो उपयोगी छे ज, पण साथे ने साथै सम्पादकोए अपनाववा जेवी सम्पादन पद्धति, आगम-प्रकाशनमां राखवा जेवी सावधानी, संशोधनक्षेत्रे कार्य करवा इच्छुकोए केळववा जेवी सज्जता व. बाबतो माटे दीवादांडीनी गरज पण सारे छे. सकळ श्री जैनसंघने जेनां मीठां फळ चाखवा मळे छे एवो परिश्रम सेवनारा आ विद्वान् विदुषीओने अन्तरनां अभिनन्दन. आपणे त्यां आगमोनां सम्पादननी वैज्ञानिक अने प्रमाणभूत पद्धतिनो पायो मुनि श्रीपुण्यविजयजीना हाथे नंखायो. तेमणे करेलां विविध आगमग्रन्थोनां सम्पादनो, बृहत्कल्पसूत्र - वृत्तिनुं सम्पादन, आ कार्यो सम्पादनना इतिहासमां अजोड कार्यो छे. एमनी ए पद्धतिने अनुसरवानुं अने तदनुसार काम करवानुं गजुं, आपणे त्यां, त्यार पछी लगभग कोई पासे नथी जोवा मळ्युं. आंशिक रूपे मुनि श्रीजम्बूविजयजीमां एवी क्षमता जोवा मळी, परन्तु तेमना सम्पादननुं मुख्य क्षेत्र दर्शन अने व्याकरण रघुं; आगम - सम्पादन ए तेमनो प्रासङ्गिक विषय ज रह्यो. आजे आगम- सम्पादन आपणे त्यां नथी थतुं एवं नथी, परन्तु श्री पुण्यविजयजीनी ऊंचाईने आंबे तेवी क्षमता क्यां जोवा मळे ? अने जे थोडुंक काम थतुं हशे, तेमां पण आधार तो पुण्यविजयजी द्वारा संकलित संशोधित सामग्री ज बने छे. ते न होय तो आगम - सम्पादननुं काम 'लोढाना चणा' बराबर छे. लोढाना चणा चाववानुं कार्य तेरापन्थनां श्रमण - श्रमणी करी रह्यां छे
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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