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________________ ७० पं. वीरविजय गणि-रचित कोणिक राज साम्हइयुं सं. तीर्थत्रयी ( मुनिश्री तीर्थरुचि - तीर्थवल्लभ-तीर्थतिलकविजय) अनुसन्धान ५२ देव के गुरु ज्यारे पोताना गाममां पधारे त्यारे भक्तजनोओ परिवार सहित वाजते-गाजते ओमना वन्दन माटे सामे जनुं, तेने साम्हइयुं कहे छे. साम्हइयुं एक श्रेष्ठ भक्ति छे. दशार्णभद्र राजाओ करेलुं भगवान महावीरप्रभुनुं साम्हइयुं श्रेष्ठ गणाय छे. पूज्य वीरविजयजी म.सा. अ' दशार्णभद्रनी सज्झाय रचेली छे. तेमां साम्हइयानी शोभानुं वर्णन छे. तेमां अढार हजार हाथी, चोवीस लाख अश्वो, एकवीश हजार रथ, ओकाणुं करोड पायदळ, ओक हजार अन्तेपुरीओ आदि विशाळ परिवार हतो. आवी रीते कोणिक राजाओ पण प्रभु वीरनुं साम्हइयुं कर्तुं हतुं. तेनुं गद्यबद्ध वर्णन श्री औपपातिक नामना उपाङ्गआगममां (सूत्र १-३७) अलङ्कारिक अने रसाळ शैलीमां रीते थयेलुं छे. तेनो पद्यबद्ध भावानुवाद पण्डित कवि श्रीवीरविजयजीओ अत्यन्त सरळ - सुगम शैलीमा कर्यो छे. आ रसाळ गेयकाव्य कविश्रीओ पोताना हस्ताक्षरोमां आलेखेलुं छे. ते काव्य अत्रे सम्पादित करी प्रस्तुत करवामां आवे छे. लींबडी- भण्डारनी नं.-२१८४ प्रत उपरथी प्रस्तुत सम्पादन थयुं छे. श्री अमृतभाई पटेलना मार्गदर्शनथी आ सम्पादन करायुं छे. परमात्मभक्ति आत्मिक आनन्द अने मुक्तिनी प्राप्तिनो अमोघ उपाय छे. भक्तिना नव प्रकारो प्रसिद्ध छे. जेने नवधाभक्ति (= श्रवण, स्मरण, कीर्तन, वन्दन, पूजन, अर्चन, दास्यभाव, सख्यभाव, आत्मनिरूपण) कहेवामां आवे छे. सामान्यतः साम्हईयुं वन्दन (४.), पूजन (५) अने अर्चन (६) माटे छे. परन्तु, विशेषतया तो साम्हइयाथी नवधाभक्ति थाय छे. 'काल्य प्रभु इहां आवशे' ना श्रवण (१) द्वारा आनन्द प्रगटेलो, प्रभु-आगमननी प्रतीक्षा करवामां सतत स्मरण १८६३, महाव. - १३, लींबडी, १. आ सज्झाय उत्तराध्ययन परथी रची छे. र.सं. ढाल - ५. -
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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