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________________ 6 वहेम पडे तो तेमां तेमनो दोष न गणावो जोईए. वास्तवमां आमां कोईनो दोष नथी. आ स्थितिनो जवाब उपर टांकेला डॉ. दीप्ति त्रिपाठीना वक्तव्यमां आवी ज जाय छे. विद्वानोनी ज अछत होय, त्यां विद्या-संस्थाओ नबळी पडे, खोडंगाती चाले, तो ते जराय अस्वाभाविक तो नथी ज. आ समस्याना मूळमां जईए तो समजी शकाय के आवुं थवामां वांक समग्र माळखानो छे, System नो छे. आपणे एवी प्रथा पाडी छे के आप त्यां M.A., Ph.D. थयेल ज चाले, विद्वज्जन जराय न चाले. बल्के M.A., Ph.D. ने ज विद्वान मानवानो आपणे त्यां रिवाज पडी गयो छे. डिग्रीलक्षी अने ते पण नोकरीलक्षी भणतरनो आपणे त्यां व्यापक महिमा छे. परम्परागत शैलीथी भणीने विद्या प्राप्त करनार आपणे त्यां डिस्क्वोलिफाइड-अमान्य बने छे. परिणामे परम्परागत पद्धतिथी थतुं ठोस अध्ययन (अने अध्यापन पण ) बंध पडवा लाग्युं छे, अने सरकारमान्य शिक्षणनो स्वीकार थयो छे. आमां क्वॉलिफिकेशन्स जरूर मळे, पण ते क्वॉलिटीनी खातरी आपे ज, एवं नथी बनतुं. मोटा भागना M.A., Ph.D. ने पोथी पकडतां पण आवडतुं नथी होतुं, वांचवानी तो वात ज क्यां ? बळी, प्रति उपरथी प्रतिलिपि (नकल) करवानुं काम तेमने हीणपतभरेलुं लागतुं होय छे : आवुं वैतरुं अमे शेनुं करीए ? आवा लोकोना सम्पादन-संशोधनमां केटली बरकत होय ते तो समजी शकाय तेवुं छे. तो केटलाक, वहीवटी निपुणता धरावता लोको, अन्य लोको पासे कोई रीते काम करावी लईने ते पोताना नामे जाहेर करता होय छे, तेवुं पण बनतुं सांभळवा मळे छे. आ तमाम फरियादो कहो के वास्तविकता, तेनुं मूळ कारण एक ज छे : 'विद्वानोनी अछत. ' * एकवार सद्गत डॉ. भायाणी साहेबने वातवातमां में कहेलुं : 'गईकाल विद्वान गृहस्थोनी हती, आवतीकाल विद्वान साधुओनी हशे.' वात एवी हती के भायाणी साहेब कढापो व्यक्त करी रह्या हता के " हवे कोई विद्यार्थी तैयार थी थता; कामो तो घणां घणां बाकी छे. अमारी उंमर पाकी गई छे. हवे आ बधुं
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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