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________________ ५४ अनुसन्धान ५२ के तलघर में ही विश्व विश्रुत श्री जिनभद्रसूरि ज्ञान-भण्डार है, जिसमें प्राचीनतम ताड़पत्रीय ४०० प्रतियाँ हैं । खम्भात का भण्डार धरणाक ने तैयार कराया था । माण्डवगढ़ के सोनिगिरा श्रीमाल मन्त्री मण्डन और धनदराज आपके परमभक्त विद्वान् श्रावक थे। इन्होंने भी एक विशाल सिद्धान्त कोश लिखवाया था जो आज विद्यमान नहीं है, पर पाटण भण्डार की भगवतीसूत्र की प्रशस्ति युक्त प्रति माण्डवगढ़ के भण्डार की है । आपकी 'जिनसत्तरी प्रकरण" नामक २१० गाथाओं की प्राकृत रचना प्राप्त है। सं० १४८४ में जयसागरोपाध्याय ने नगर कोट (कांगडा) की यात्रा के विवरण स्वरूप “विज्ञप्ति त्रिवेणी" संज्ञक महत्त्वपूर्ण विज्ञप्तिपत्र आपको भेजा था । इस स्तोत्र में पद-परिमाण का निर्वचन नहीं किया गया है। निर्वचन के बिना स्पष्टीकरण नहीं होता है कि यहाँ पद का अर्थ क्या है, क्योंकि जो पद प्रमाण दिया गया है वह वर्तमान के आगम अंग से मेल नहीं खाता । इसीलिए श्रुतिपरम्परा को ही आधार मानकर चलना उपयुक्त है । प्रारम्भ में ११ अंगों का पद-परिमाण दिया गया है, वह निम्न है :आचाराङ्ग सूत्र, पद परिमाण १८,००० सूत्रकृताङ्ग सूत्र, पद परिमाण ३६,००० स्थानाङ्ग सूत्र, पद परिमाण ७२,००० समवायाङ्ग सूत्र, पद परिमाण १,४४,००० भगवती सूत्र, पद परिमाण २,८८,००० ज्ञाताधर्म कथाङ्ग सूत्र, पद परिमाण ५,७६,००० उपासक दशाङ्ग सूत्र, पद परिमाण ११,५२,००० अन्तकृद् दशाङ्ग सूत्र, पद परिमाण २३,०४,००० अनुत्तरोपपातिक दशाङ्ग सूत्र, पद परिमाण ४६,०८,००० प्रश्नव्याकरणाङ्ग सूत्र, पद परिमाण ९२,१६,००० विपाकाङ्ग सूत्र, पद परिमाण १,८४,३२,००० इसके पश्चात् दृष्टिवाद पाँच भेद वर्णित किये गये हैं - परिकर्म, सूत्र,
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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