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________________ १० अनुसन्धान ५१ दार्शनिक भूमिका हती, अ स्पष्ट करी आपी छे. आनन्दघनजीना अनेकान्तवादनुं अहीं सरस विश्लेषण छे. जैनदर्शन स्वयं अक दृष्टि छे अने बधी दृष्टिओनो समन्वय छे ओ समजाव्युं छे जे आजना समयसन्दर्भे अत्यन्त प्रस्तुत छे. तुलनावादी अभिगमनी वात पण गमी ने ओ पण जरूरी ज छे. अन्यना मतोना सन्दर्भमां जैनदर्शन आदिनी चर्चा रसप्रद रही. गंभीर विषयनी मावजत रसाळ रही. श्री हसु याज्ञिकनो लेख पण खूब ज गम्यो. + अर्धमागधी भाषानाना उद्भव अने विकास विशेनो प्रो. सागरमल जैननो लेख अनेक अर्थमां मूल्यवान छे. भाषाविज्ञानना सन्दर्भमां घणी गूंचो दूर करनारो छे. वळी प्राकृत, पालि, मागधी, अर्धमागधी आदि अंगेनी भ्रामकता पण दूर करनारो लेख छे. ओमणे विकासक्रमना अ युगना परिबळो आदिना सन्दर्भमां अर्धमागधीनी जे विशद् चर्चा करी छे से विस्मित करी दे ओवी छे. शिलालेखो, पालि त्रिपिटक, अशोकना अभिलेखो, अर्धमागधी आगम, आदिनो आ सन्दर्भमां ओमणे विचार विनियोग कर्यो छे. ओमनो बीजो लेख 'कया आर्यावती' जैन सरस्वती है ?' लेख पण आवो ज गंभीर छे. चित्र तथा अभिलेख वडे थयेली चर्चा प्रभावक छे. बन्नेमांथी उभी थती जब्बर संशोधक तरीकेनी श्री सागरमलजीनी भूमिका वन्दनीय छे. + डॉ. अनिताबहेन बोथरानो लेख 'हिन्दु और जैनव्रत...' बहु ज गम्यो. घणी बाबतो जाणवा मळी. आवी रीते आपणे भाग्ये ज जोईओ छीओ. बे दृष्टि, बे शैली, बे परम्परा ने बेमां साम्य ने जुदापणुं या व्यावर्तक बाबतो आदिनी चर्चा रसप्रद रही. संशोधन प्रवृत्ति अने संशोधन माटेनी सज्जता पाछळ रहेली महेनत अहीं जोई शकाय छे. अन्य लेखोय वांच्या ज ने गम्या ज छे. ‘जैन तर्कभाषा' ग्रन्थना सन्दर्भमां भुवनचन्द्रजीनी चर्चा गमी. आजकाल थता सम्पादनोमां कशीय सम्पादकीय सूझ प्रगट ना थई होय, छतां नाम आवे, वळी पूर्वसम्पादकनी जगाओ ओ आवे, त्यारे सम्पादकनी भूमिका शी ? ओवो मुद्दो चिन्त्य छे. आ बधाथी अलग पडीने चोक्कस सम्पादकीय सूझ साथे थयेला आ ग्रन्थनी सराहना यथार्थ ज.
SR No.520552
Book TitleAnusandhan 2010 06 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages159
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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