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________________ जून २०१० एक पत्र ९ परम आदरणीय महाराजश्री, वंदन. 'अनुसंधान' : ५० - भाग : ०२ अंक वांच्यो. भाग : १ विशे तो एकबे P.C. लख्यां हतां, अ मळ्यां ज हशे. पहेलां तो अंक जेमनी पुण्यस्मृतिमां अर्पण थयो छे एवा श्रुतस्थिर दर्शनप्रभावक स्व. मुनिराज श्रीजम्बूविजयजी महाराजने सादर वन्दन. विहार दरमियान जे रीते तेओश्री अन्य साधुजन साथे काळधर्म पाम्या ঔ घटना अरेराटी ने पछी घेरी वेदना जन्मावनारी बनी हती, ज्यारे समाचारपत्रमां अना विशे वांचवामां आव्युं हतुं त्यारे. आ अंकमां अमने श्रद्धांजलि आपता पत्रो छे. लेखो छे. आपनो लेख पण छे. प्रो. नलिनी बलबीर अने विदेशी विद्यार्थीनीनी नोंधो तथा अहेवाल अने सूचनो आदि छे आ बधुं ज वांचीने अंदरथी हली जवायुं. केवी छे करुण नियति ! केवा प्रतिभासंपन्न पण्डित ! जैनधर्मपरम्परा, जैनोलोजी अने संशोधनना क्षेत्रे एमनी जे कामगीरी हती ओ जोतां लागे के केटली मोटी खोट पडी छे जैन संघने ने आगळ वधीने कही शकीओ, जराय अतिशयोक्ति विना के देश-विदेशमां पण आ दिशामां संशोधनरत ने आ दिशानी प्रतिभा धरावनारा जूज, अथी देश-विदेशमांय जब्बर खोट ! अमना विशे मने आ लेखोथी, घणुं जाणवानुं - समजवानुं मळ्युं छे. आ बधा ज लेखो महाराजश्री प्रति उंडा स्नेहभावथी लखाया छे. ओमां अकाळे थयेला ओमना आवा अकस्मातनों अवसाद पण जोई शकाय छे. विदेशी विद्यार्थिनीनो लेख आपणने विचार करता पण करी दे छे के आपणे क्यां छीओ ? ओक विराट व्यक्तिमत्ताने साचववी जोईओ ओ ना थई शक्युं जे परिबळो, अकस्मातमां जे रीते निमित्त बन्यां से पुनः निमित्त ना बने ओवी गांठ पण बंधावी जोइओ. अ ज साचुं तर्पण ने साचो पस्तावो ! - + ‘गूढार्थं दोहाओ....' शीर्षक अन्तर्गत डॉ. निरंजन राज्यगुरुनुं सम्पादन अने भूमिका वांची आनन्द थाय अ सहज बाबत छे. मजा पण आवी. दोहा आदिनी सरऴता प्रवाहिता अने लयमाधुर्यने कारणे वारंवारे वांचतो रह्यो . 'मरमी संत आनन्दघन....' लेखमां नगीनभाई शाहे जे रीते जैन परम्परा अने जैनचिंतनधाराना व्यापक परिप्रेक्ष्यमा आनन्दघननी ओक मरमी संतलेखे
SR No.520552
Book TitleAnusandhan 2010 06 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages159
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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