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________________ ५६ अनुसन्धान ५० (२) निराकार साकार सचेतन, ... ... ... ... ॥१॥ निराकार अभेद संग्राहक, भेदग्राहक साकारो रे, दर्शन-ज्ञान दुभेद चेतना, वस्तुग्रहण व्यापारो रे ॥२॥" जैनदर्शनमा 'दर्शन' शब्द बे अर्थमां प्रयोजायो छे - (१) श्रद्धा (२) ओक प्रकारनो बोध. नोंधपात्र वात ओ छे के श्रद्धाना अर्थमां 'दर्शन' शब्दनो प्रयोग उपनिषदो, जैन परम्परा अने बौद्ध परम्परा सिवाय बीजे क्यांय थतो नथी. आपणे जे पंक्तिओनो विचार करीओ छीओ त्यां 'दर्शन' शब्द ओक प्रकारना बोधना अर्थमा प्रयोजायो छे. दर्शन पण अेक प्रकारनो बोध छे अने ज्ञान पण एक प्रकारनो बोध छे. आ बे बोध वच्चे शो तफावत छे ? दर्शन अने ज्ञान वच्चे शो भेद छे ? आ समस्या छे. आ अंगे जैन चिन्तकोमां मतभेद छे. सचेतन निराकार-साकार उभयात्मक छे, चेतना उभयात्मक छे. चेतनाप्रकाश निराकार पण छे अने साकार पण छे. चेतनानो वस्तुग्रहणव्यापार निराकार अने साकार बे प्रकारे होय छे. चेतनाप्रकाशने के चेतनाना वस्तुग्रहणव्यापारने जैन परिभाषामां उपयोग पण कहेवामां आवे छे. अटले जैन आगमोमां कडं छे के उपयोग बे प्रकारनो छे - निराकार उपयोग अने साकार उपयोग. सादी भाषामां कहीओ तो बोध बे प्रकारनो छे - निराकार अने साकार, अने निराकार बोध अटले दर्शन अने साकार बोध ओटले ज्ञान. आ वस्तुने वधारे स्पष्ट करतां कहेवामां आव्युं के निराकार बोध अटले सामान्यग्राही बोध (दर्शन) अने साकार बोध ओटले विशेषग्राही बोध (ज्ञान). "जं सामण्णगहणं दंसणमेयं विसेसियं णाणम् ।" - सन्मतितर्कप्रकरण (२.११). अर्थात्, अभेदग्राही बोध ओ दर्शन छे अने भेदग्राही बोध ओ ज्ञान छे. आ मत स्वीकारतां, प्रथम दर्शन उत्पन्न थाय अने पछी ज ज्ञान उत्पन्न थाय, सामान्यन ग्रहण कर्या विना विशेष- ग्रहण थाय नहि. "प्राग् अनाकारः पश्चात् साकार इति प्रवृत्तौ क्रमनियमः, यस्तु नाऽपरिमृष्टसामान्यो विशेषाय धावति ।" - तत्त्वार्थभाष्य उपर सिद्धसेनगणिटीका, २.९. आ मतनो स्वीकार आनन्दघनजीनी उपरनी पंक्तिओमां छे. केटलाक जैन चिन्तको आ मत स्वीकारता नथी. ते माटेनो तेमनो ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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