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मार्च २०१०
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मुख्य तर्क नीचे मुजब छे. जैनदर्शन अनुसार वस्तु सामान्यविशेषात्मक छे. वस्तुग्राही बोधने ज यथार्थ अथवा प्रमाण कहेवाय. केवळ सामान्यग्राही बोधने के केवळ विशेषग्राही बोधने वस्तुग्राही गणाय नहि अने तेथी यथार्थ के प्रमाण गणाय नहि. आमांथी से फलित थाय के आ चिन्तको दर्शनने पण सामान्यविशेषग्राही गणे छे अने ज्ञानने पण सामान्यविशेषग्राही गणे छे. तो पछी तेओ दर्शन अने ज्ञान वच्चेना भेदनो खुलासो केवी रीते करशे अने तेमनी क्रमोत्पत्तिने केवी रीते समजावशे ? आ चिन्तकोनुं समाधान आ प्रमाणे छे सामान्यविशेषात्मक आत्मस्वरूपग्रहण दर्शन छे अने सामान्यविशेषात्मक बाह्य वस्तुनुं ग्रहण ज्ञान छे. “सामान्यविशेषात्मकबाह्यार्थग्रहणं ज्ञानं तदात्मकस्वरूपग्रहणं दर्शनमिति । " धवला टीका पृ.१४७. कुन्दकुन्दाचार्ये नियमसार गाथा १६०मां "दिट्ठी अप्पपयासा चेव" लखीने दर्शन आत्मप्रकाशक होय ओवो पक्ष रजू कर्यो छे. पण क्रमोत्पत्तिने केवी रीते समजावशो ? आनो विचार करीओ. 'तदात्मकस्वरूपग्रहण' पदमां आवेला 'स्वरूप' शब्दनो अर्थ आत्मस्वरूप या आत्मा कर्यो छे तेने बदले ज्ञानस्वरूप या ज्ञान करवामां आवे तो आ प्रश्ननो खुलासो थई शके. विषयनुं ग्रहण ए ज्ञान, अने आ ज्ञाननुं ज्ञान अ दर्शन. आम, अहीं क्रम ऊलटो थई जाय पहेलां ज्ञान अने पछी दर्शन. परंतु जैनोना मतमां ज्ञाननुं ज्ञान से स्वसंवेदन छे. ओटले क्रमपक्षने अवकाश नथी पण युगपत्पक्ष ज स्वीकार्य बने..
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आ बीजा मतमां सामान्यविशेषग्राही दर्शन अने सामान्यविशेषग्राही ज्ञान वच्चेना भेदने तेम ज तेमनी क्रमोत्पत्तिने बीजी रीते पण समजावी शकाय छे परंतु कोई जैन चिन्तके तेनो उपयोग कर्यो नथी. प्रथम मतमां माननारा सामान्यग्राही बोधने माटे निर्विकल्प बोध अने विशेषग्राही बोधने माटे सविकल्प बोध ओवा प्रयोगो करे छे. अहीं आपणे नोंधवं जोईओ के विकल्पनो अर्थ विचार पण छे अने आ अर्थ अनुसार बीजा मतने स्वीकारनारा जैन चिन्तको कही शके के सामान्य-विशेषनुं निर्विचार ग्रहण दर्शन अने सामान्य- विशेषनुं सविचार ग्रहण ज्ञान आम दर्शन अने ज्ञान बनेनो विषय तो अकनो ओक ज होय छे पण दर्शन विचार द्वारा ते विषयने ग्रहण करतुं नथी ज्यारे ज्ञान विचार द्वारा ते विषयने ग्रहण करे छे. प्रशस्तपाद, जयन्त भट्ट आदि न्यायय-वैशेषिक चिन्तको स्वीकार्यं छे के निर्विकल्प प्रत्यक्ष अने सविकल्प प्रत्यक्ष बनेनो
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