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________________ ११० अनुसन्धान ५० (२) होती है। इस काल में तपोविधि के साथ-साथ अन्य नये व्रतों की शुरूआत हुई । इन नये व्रतों को 'तप' के बदले 'व्रत' कहने का प्रारम्भ हुआ । ११वी शताब्दी में महेश्वरसूरिने 'ज्ञानपंचमीकथा' में 'पंचमीवय' (पञ्चमीव्रत) शब्द का प्रयोग किया ।३७ इस एक व्रत के माहात्म्य के लिए दस कथाएँ लिखी । इसमें व्रत का संकल्प, विधि, उद्यापन तथा ऐहिकपारलौकिक फल का स्पष्टतः निर्देश है।३८ आश्चर्य की बात यह है कि ज्ञानपंचमी व्रत के फल आदि का कथन मुनियों के मुख से करवाया है ।३९ 'ज्ञानपंचमीकथा' जिस प्रकार एक व्रत पर आधारित है उसी प्रकार 'सुगन्धदशमीकथा' भी एक व्रत का माहात्म्य बताने के लिए रची गयी है ।४० १२वी शताब्दी के जैन शौरसेनी ग्रंथ 'वसुनन्दि-श्रावकाचार' में रोहिणी, अश्विनी, सौख्यसम्पत्ति, नन्दीश्वरपंक्ति और विमानपंक्ति इन व्रतों का निर्देश है। लेकिन खुद ग्रन्थकार ने इनको व्रत भी नहीं कहा है और तप भी । भाषान्तरकार तथा सम्पादक ने इनको स्पष्टतः 'व्रत' कहा है। इस ग्रन्थ में स्वर्ग तथा मोक्षप्राप्ति रूप फल बताये हैं ।४१ जैन परम्परा में बिलकुल ही मेल न खानेवाली एक बात इस ग्रन्थ में कही है । जैसे कि___ उज्जवणविही ण तरइ काउं जइ को वि अत्थपरिहीणो । तो विउणा कायव्वा उववासविही पयत्तेण ॥४२ तप और उपवास को दुय्यम स्थान पर रखते हुए दान तथा उद्यापन को इसमें अधोरेखित किया है। १४वी शताब्दी के जिनप्रभकृत 'विधिमार्गप्रपा' ग्रन्थ का स्थान जैन विधि-विधानों के इतिहास में विशेष लक्षणीय है । इस संकलनात्मक ग्रन्थ में उन्होंने महाव्रत, अणुव्रत, तप तथा नये व्रत इन सबकी विधि विस्तारपूर्वक दी है। सम्यक्त्व से आरम्भ करके श्रावकव्रत, साधुव्रत तथा समग्र श्रावक तथा साधुआचार को परिलक्षित करके इन्होंने व्रतारोपण की विधियाँ बनायी ।४३ विधिमार्गप्रपा में व्रतों के संकल्प तथा फल का निर्देश नहीं है तथापि उद्यापन का सुविस्तृत वर्णन है । ग्रन्थ में 'व्रत' शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, सभी को 'विधि' ही कहा है ।४४ इनके व्रत वर्णन से लगता है कि ब्राह्मण परम्परा के पौराणिक व्रतों का जैन परम्परा के व्रतों पर प्रभाव पड़ने लगा है । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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