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अनुसन्धान-५०
अथ मरुधरदेशवर्णनमाह
मरुधरदेश मोटु अछ, सहू देशां सिरताज । अवरदेशां सिर सेहरो, पूरे वंछित काज ।।१।। वागवगीचा अति घणा, सजल सरोवर सार ।
आंबा रायण अति भला, कोयलना टहूकार ॥२॥ मोर झिंगोरां दादुरां, बबईया बोलंत | अतर अबीर गुलालसुं, खेलै मास वसंत ।।३।। वली इण देशै तिर्थ छै, रांणपुरो रिसहेस । कापरडै फलवधिपुरी, निरखी नयणां वेस ॥४॥ इणदेशै अधिपति भलो, मानसिंघ महाराज ।
अतितेजै सूरज समो, सारै सहूना काज ।।५।। तेहनी आज्ञा छै इहां, वरतै हुकम प्रमाण । सकलनगर सिर मुकुटमणि, जोधनगर सुभ ठाण ॥६।। कोड जुगै प्रतपो सदा, श्रीश्रीजी सुविहांण । पुर जोधांण पधारीय, अरिज चढे परिमाण ||७|| इम अनेक गुण सोभतो, मोहतो जन मनरंग । धरामंडण ए नगर छै, चावो नगर सुचंग ।।८।। __ अथ योधपुर गजलवर्णनमाह
॥ दूहा ॥ सुंडाला तो समरतां, उपजै उकित अपार । गजल कहुं जोधांणकी, सुणज्यौ सब संसार ॥१॥ नगर देश केई निपट, जगमै कैता जोय । जोधांणो देख्यौ जरै, होड न इणरी होय ॥२॥ गजल कहुं तिणरी गुणी, अपनी मति अनुसार । दीठो जीसडो दाखीयो, परतख गुण अणपार ॥३॥
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