SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ अनुसन्धान-५० अथ मरुधरदेशवर्णनमाह मरुधरदेश मोटु अछ, सहू देशां सिरताज । अवरदेशां सिर सेहरो, पूरे वंछित काज ।।१।। वागवगीचा अति घणा, सजल सरोवर सार । आंबा रायण अति भला, कोयलना टहूकार ॥२॥ मोर झिंगोरां दादुरां, बबईया बोलंत | अतर अबीर गुलालसुं, खेलै मास वसंत ।।३।। वली इण देशै तिर्थ छै, रांणपुरो रिसहेस । कापरडै फलवधिपुरी, निरखी नयणां वेस ॥४॥ इणदेशै अधिपति भलो, मानसिंघ महाराज । अतितेजै सूरज समो, सारै सहूना काज ।।५।। तेहनी आज्ञा छै इहां, वरतै हुकम प्रमाण । सकलनगर सिर मुकुटमणि, जोधनगर सुभ ठाण ॥६।। कोड जुगै प्रतपो सदा, श्रीश्रीजी सुविहांण । पुर जोधांण पधारीय, अरिज चढे परिमाण ||७|| इम अनेक गुण सोभतो, मोहतो जन मनरंग । धरामंडण ए नगर छै, चावो नगर सुचंग ।।८।। __ अथ योधपुर गजलवर्णनमाह ॥ दूहा ॥ सुंडाला तो समरतां, उपजै उकित अपार । गजल कहुं जोधांणकी, सुणज्यौ सब संसार ॥१॥ नगर देश केई निपट, जगमै कैता जोय । जोधांणो देख्यौ जरै, होड न इणरी होय ॥२॥ गजल कहुं तिणरी गुणी, अपनी मति अनुसार । दीठो जीसडो दाखीयो, परतख गुण अणपार ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy