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डिसेम्बर-२००९
एवं पञ्चजिनाधीशान्, जिनवाणी तथैव च ।। श्रीमाणभद्रयक्षं च, नत्वा लेख: प्रलिख्यते ॥८॥
अष्टभिः कुलकम् ॥ अथ भाषामयी पञ्चपरमेष्ठी(ष्ठि)नां स्तुतिः ॥
॥ दूहा ॥ स्वस्ति श्रीसुखसंपदा, आंणी अधिक उच्छाह । नाभिनरिंदसुत समरतां, पातिक दूर पुलाह ।।१।। शान्तिजिनेसर हुं नमुं, हथिणापुरनो राय । अचिरानन्दन सेवतां, दिन दिन दोलित थाय ॥२।। स्यांमवरण तनु सोभतो, सुखसंपत दातार । पशूव पुकार सुणी करी, छांडी राजुल नार ॥३।। अश्वसेन कुल चंदलो, वामादै मात मल्हार । कमठहठमदभांजनै, पाम्या भवजलपार ।।४।। सिद्धारथसुत वीरजी, जयवंतो जिनचन्द । अष्ट करम दूरै करी, पांम्या परमानन्द ॥५।। पंच तीरथ प्रणमुं सदा, पंचम गति दातार । सदगुरु पय प्रणमी करी, लिखु लेख विस्तार ||६|| ॥ अथाऽग्रे गुर्जरदेशवर्णनमाह ॥
॥ दूहा ॥ गुर्जर देश सुहावणो, बहु वाडी वन बाग । सजल सरोवर सुघड नर, करत सफल जन मा(भा)ग ||१|| तिण देसे सहिरां शिरै, राधणपुर सुखकार । इंद्रनगरनी ओपमा, वर्ण वसै तिहां च्यार ॥२॥ सुखीया लोक वसै सदा, धरमी नै धनवंत । लक्ष्मीधर व्यवहारीया, नांमै घणु यशवंत ||३|| पहिरण ऊढण अंबरै, जरकस नै जरबाब । तेल फुलेल अबीरमै, रहै सदा गरकाब ॥४॥ पचरंगी पाघां भली, तुररा बहु लटकंत । भ(ज)लहलै अति सूरज समा, देखी मन मोहंत ।।५।।
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