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________________ डिसेम्बर-२००९ ४३ भवनभूषण-भूषणभवन काव्य - सं. उपा. भुवनचन्द्र अमारा संग्रहमांनी एक अपूर्ण प्रतिमांथी मळेलुं आ चमत्कृतिसभर काव्य अपूर्ण छे- त्रुटित छे. ११ पत्रनी प्रतना प्रारम्भना पांच पत्र नथी. रचना अष्टक प्रकारनी छे पण आठ-आठ श्लोको, बन्धन कविए स्वीकार्यु नथी. चोथा अष्टकनो अन्तिम श्लोक मळे छे जे नवमो छे. अष्टक ५, ६, ७मां नवनव श्लोक छे. आठमा अष्टकमां आठ श्लोक पूरा थया पछी फरी एकथी नव श्लोक आप्या छे, ते पछी आठमुं अष्टक पूरुं थाय छे. त्यार बाद बे श्लोक छे जेमां कविनी गर्वोक्ति छे. प्रत शुद्ध करेली छे. अक्षरो मरोडदार अने विशाल छे. लाल अने काळी - एम बे शाहीनो उपयोग थयो छे. ज्यां ज्यां लहियानी भूल थई छे तेवा स्थाने संमार्जन थयेलुं छे. पदच्छेद, संशोधन तथा टिप्पण सूचववा माटे सम्पूर्ण प्रतमां लिपिचिह्नो छूटथी वपरायां छे. प्राचीन लेखनपद्धतिमां लिपि चिह्नोनो प्रयोग कई रीते थतो हतो ते समजवा आ प्रति एक नमूनानुं काम आपे एवी छे. कोईक विद्वान मुनि अथवा पण्डिते काव्यना कठिन शब्दो, कूटस्थानो वगेरेनुं स्पष्टीकरण करतां टिप्पणो लख्यां छे. शाही उखड़ी जवाथी क्यांक क्यांक शब्दो पूरा वंचाता नथी अथवा अस्पष्ट वंचाय छे. प्रति सोळमा शतकनी जणाय छे. , कृतिना रचयिता वाचक साधुहर्ष छे. अन्तिम श्लोकमां कर्ता कहे छे के विद्वान लक्ष्मणना अनुरोधथी, सुमतिलाभ माटे साधुहर्षे आ रचना करी, कर्ताना गुरु, गच्छ के समयनो निर्देश प्रतमां के कृतिमां नथी. कर्ता तथा कृतिना रचनाकाल विशे विशेष तपास थई शकी नथी. कृतिना अन्ते 'भुवनवर्णने भवनभूषणे भूषणभवने' एवो उल्लेख छ तेथी 'भवनवर्णन' एवं नाम मानी शकाय परंतु प्रत्येक अष्टकना अन्ते 'भवनभूषणे भूषणभवने' ए ज लखेलुं छे, तेथी ए नाम वधु योग्य लागे छे. Jain Education International tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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