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अनुसन्धान-५०
मुद्दो बनावीने रचायेल आ ग्रन्थ छे. मूल ग्रन्थ प्राकृत २९ गाथात्मक छे. जेनी रचना पौर्णमिक आ मानतुङ्गसूरि द्वारा वि.सं. १२६०मां थई छे. तेमना ज शिष्य श्रीमलयप्रभसूरिवरे ६६०० श्लोक प्रमाण वृत्ति ते ग्रन्थ उपर लखी छे, जे संस्कृत-प्राकृत पद्यात्मक छे, अने अनेक कथाओथी सभर छे..
आ ग्रन्थनी एकमात्र ताडपत्र प्रति खम्भातना श्री शान्तिनाथ प्राचीन ताडपत्र भण्डारमा उपलब्ध छे. अन्यत्र क्यांय आनी प्रत होवानुं आज पर्यन्त जाणवामां आव्युं नथी. आ ग्रन्थ- प्रथम सम्पादन आ. श्रीकुमुदसूरिजीए वि.सं. २००६मां करेलुं. तेमणे उपर्युक्त ताडपत्र प्रतिना आधारे आ सम्पादन कर्यु हतुं.
ते ग्रन्थ आजे अज्ञात तथा अलभ्यप्राय होवाथी तेनुं पुनः प्रकाशन आ पुस्तक रूपे थयुं छे, जे आवकारदायक छे. आवा प्राचीन अप्राप्य ग्रन्थो आ रीते पुनरुद्धार पामे ते इच्छवाजोग छे, अने ते माटे उद्धारकोने धन्यवाद घटे छे.
__पुनः सम्पादिका साध्वीजीए, आ प्रकाशनमां सातेक परिशिष्टो, अनुक्रमणिका, तथा थोडाक अंशे शुद्धीकरण एटलुं करीने आ ग्रन्थने यथावत् छपाव्यो छे. प्रताकारने बदले पुस्तकाकारे कर्यो छे ते वाञ्छनीय फेरफार गणाय.
मुखपृष्ठ उपर मूल सम्पादकनुं नाम लखीने पुनःसम्पादकनुं नाम लखात तो औचित्य जळवात. अशुद्धिओर्नु केटलेक अंशे मार्जन थयुं हशे, छतां हजी तेनुं प्रमाण रहे ज छे. प्रकाशन करवा पूर्वे मूल पोथी पासे पुनः जवा जे, हतुं. तेथी घणो लाभ थयो होत. परिशिष्टो सारां छे ज, तेमां मूळ प्राकृत ग्रन्थ (२९ गाथात्मक) ने पण एक परिशिष्ट तरीके मूक्यो होत तो जिज्ञासुओने मूळ कृति सुधी जवानुं सुगम बनत. ग्रन्थना मूल स्रोतसमान श्रीभगवतीसूत्रनो मूळ सन्दर्भ पण परिशिष्टरूपे मूकी शकायो होत तो वधु उत्तम काम बनत.
एकंदरे उपकारक स्वाध्याययोग्य प्रकाशन. आवा दुर्लभ ग्रन्थने पुनः जीवन आपवा बदल सम्पादिका साध्वीजीने पुनः पुनः अभिनन्दन.
९. इन्दुदूतम् (खण्डकाव्यम्); कर्ता : उपाध्याय श्रीविनयविजय गणि, 'प्रकाश' टीकाकार : - आ. विजयधर्मधुरन्धरसूरि, प्र. वर्धमान जैन त.वि. ग्रन्थ प्रकाशन - पालीताणा, सं. २०६४, ई. २००८
गच्छपति आ. विजयप्रभसूरिजी उपर लखेल विज्ञप्तिपत्ररूप अने मेघदूत
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