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डिसेम्बर-२००९
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ग्रन्थपरिचय :
'तर्करहस्यदीपिका' नो अनुवाद : भारतीय तत्त्वज्ञानना विद्यार्थीओ माटेओक उपहार
'तर्करहस्यदीपिका' : श्री हरिभद्रसूरिकृत 'षड्दर्शन समुच्चय'नी टीका. टीकाकार श्री गुणरलसूरि. गुजराती अनुवाद : डो. नगीनभाई जी. शाह, प्रका. : श्री १०८ जैनतीर्थदर्शन भवन ट्रस्ट, पालीताणा-अमदावाद-मुंबई. ई.स. २००९, पृ. ७२४+७८. मूल्य : ५८०/-.
श्री हरिभद्रसूरि कृत 'षड्दर्शन समुच्चय' ग्रन्थ भारतीय दर्शनोनो सारसंक्षेप रजू करती ओक प्रशिष्ट कृति तरीके विख्यात छे. समदर्शी श्री हरिभद्रसूरिओ आमां दर्शनोनुं संक्षिप्त दर्शन कराववानो अभिगम राख्यो छे. आ लघुकृति पर श्री गुणरत्नसूरिओ 'तर्करहस्यदीपिका' नामे विस्तृत टीका रची छे. मूळ ग्रन्थमां सूचिरूपे संगृहीत दार्शनिक बिन्दुओने टीकाकारे तार्किक चर्चा रूपे अटली विशदताथी अने अधिकृतताथी चा छे के आ टीका महाभाष्यनी कक्षाओ पहोंची गई छे. प्रत्येक दर्शनोना सिद्धान्तो चोकसाईपूर्वक उपस्थित करी ते ते दर्शन द्वारा तेना समर्थन माटे प्रयोजायेल तर्को टीकाकार विस्तारथी समजावे छे. जैनमतना निरूपणमां अन्य मतोनो प्रतिवाद करवामां आव्यो छे, किंतु आ चर्चा धीर-गम्भीर भावे थई छे, क्यांय कटुता, कटाक्ष के कर्कशता डोकाती नथी. टीकानो वाक्यविन्यास सुग्रथित, स्पष्ट अने अर्थगरिष्ठ होवा छतां दूरान्वयी के क्लिष्ट नथी, बल्के प्रसादमधुर संस्कृतगिरानो रसास्वाद करावनारो छे.
आ प्रौढ कृतिनो गुजराती अनुवाद आ ग्रन्थमां आपवामां आव्यो छे. अनुवादक छे भारतीय तत्त्वज्ञानना लब्धप्रतिष्ठ विद्वान डो. नगीनभाई जी. शाह. आ प्रशिष्ट ग्रन्थनो अनुवाद दर्शनशास्त्रोना प्रखर अभ्यासी विद्वानना हस्ते थाय ओ ओक सुभग संयोग गणाय. ओक अधिकारी विद्वानना हाथे थयेलो आ अनुवाद, मात्र अनुवाद न रहेतां विशद विवरणनी कक्षाओ पहोंच्यो छे. संस्कृतनो पर्याप्त अभ्यास न होय तेवा विद्यार्थीओ पण आ अनुवादना आधारे आ प्रशिष्ट ग्रन्थमा ठसोठस भरेली तर्कसमृद्धि सुधी पहोंची शके अवो आ अनवाद छे. शब्दशः भाषान्तरने बदले अर्थवाही गुजराती रूपान्तर छे तेथी
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