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________________ अनुसन्धान-५० कुंमरी सूधी श्राव्यका तस नवी बोलावइ । चरचा कीधी धर्मनी तव ते दूख पावइ ॥८६(८७)।। हरीहर भ्रह्मा थापती सीतापती राम । जग सघलइ वापी रह्या परमेश्वर नाम ||८७।(८८)॥ मली कहइ सुणि तापसी जो सघलइ सांई । अस्युच वस्तम्हां ते थयो एम न मलइ कांई ॥८८(८९)।। जो सहुनई सांईई घडयां शा न्हाना मोटा ।। एक सुखीआ सरया कसई एकनई नही रोटा ॥८९।(९)।। ईसिं नारि न ओलखी वर आपी भागो । सुतमु सीस वडारीउं शिरि हाथ्य न लागो ॥९०(९१)।। बली द्वारिकां कहाननी गोपी लुटाई । बालिक परि बाली तणां चीवर लेई जाई ॥९१।(९२)। ए परमेस्वर ताहरो मुझ जीनवर देवो । अनंतज्ञान नारी नही सूर करतां सेवो ॥९२।(९३)।। करता थापइ करमनिं तु न लहइ मरम । मानभ्रीष्ट थई तापसी काई न रही शरम ॥९३।(९४)।। द्वेष धरी त्याहा चीतवइ जोगिणि धुतारी । हुँ परणावं एहनि ज्याहां होइ बहु नारी ॥९४।(९५)।। चोखा क्यंपिलपुर्य गई यतशत्रु राजा । सहइस नारि तेहनि धरी ब्यहुत दीवाजा ॥९५६(९६)।। चोखा नृपनि जई मली नृप दइ बहुमान । अंतेवर देखाडीओं पुछई देई दान ॥९६(९७)।। अंतेवर आq वली ति दीर्छ क्याहि । मुखि मरकलडो मुकती हसती मन मांहि ।।९७।(९८)। नालीद्वीपना मानवी भखि श्रीफल त्याहि । एह व्यनां मनि चीतवइ नही खावू क्याहिं ॥९८।(९९)।। त्यम तुं राजा चीतवइ अंतेवर सारूं । 'असी नारि क्याहिं नही ध्यन जीवत म्हारूं ||९९।(१००)।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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