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________________ ११८ अनुसन्धान-५० न चल्यो नवी कोप्यो तही भषइ जाम सीआलि । अहो अहो दूखर करइ अवंती ज सुकमाल ॥६२।। श्रावक दूखर देख्य करि तुठो सुरवर सार । खसी थईनि आपतो मणिमइ कुडल च्यार ॥६३।। श्रावक सोय मीथलां गयो मल्यो कुभनि मानि । कुडल दो तीहा दीइ घाल्या मली कानि ॥६४|| श्रावक त्याहाथी संचर्यो आव्यो चंपामाहि । अंगरायनिं ते मल्यों कुडल आप्यां त्याहि ॥६५॥ भूपि साहा संतोषीओ पूछी अचरीत वात । कहइ मली कुमरीतणुं दीठू रूप वीख्यात ॥६५ । (६६)। नारि ध्यननि कारणि जण जो णासो जाय । सुणी भुप विवल हुओ दुत पाठवइ राय ॥६६ । (६७)।। ॥ चोपई ॥ एणइ अवसरि कुंणाला राय 5षी(पी) भुपना सहु गुण गाय । नारी धारणी तेनि कही बिटी सबाहु सुदर लही ॥६७ । (६८)।। वरसगाठि दिन पुत्रीतणो घरि ओछव तव माड्यो घणो । पूत्रीनिं शणगारइ माय खोलइ बइसारइ तव राय ||६८/(६९)।। पूछइ सवी स्यभा ते माहिं अस्युं रूप दीर्छ कुणि क्याहि । बइ करजोडी बोल्यो दूत मलीरुप जगम्हा अदभुत ॥६९।(७०)।। नारी अंब ईखुरस वाढ वाति नरनी गलती डांढ ।। रूपिराय हुई ईच्छया घणी दूत मोकल्यो मीथला भणी ॥७०।(७१)। मलि कानि कुडल हवइ दोय साधि उंषडी तेहनी जोय । सोनीनिं तेडइ तेणइ ठाय मेल्यों साधि कहइ कुभराय ॥७१।(७२)। एनी साधि मेली नवी जाय कोहो तो नवा नींपाईइं राय । एणइ वचने खीयो भुपाल पूर बाहिर काढ्यो समकाल [७२(७३)।। शंखराय कइ आव्या तेह भाख्युं वीतक हुतुं जेह । रूप वखाणुं मली तणुं वाति मोह्यो राजा घणुं ॥७३(७४।। धन नारी परनंद्या मान न दीइ त्याह जोगेदर कान । बीजानु मन न रहइ ठामि दूत मोकल्यो मली कामि ||७४।(७५)।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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