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डिसेम्बर २००९
बोल्यो तव सुबधी परधान भुपति तुम म करो अभीमान । दादुर जलि ऊंदकतो अती जाणइ कुप समुं को नथी ॥५०॥ त्यम तूम राय वखाणो दडो मिं दीठो छइ एहथी वडो । मली - म्होछवि दीठो तदा वरसगाठि हुई स्त्री जदा ॥५१॥ नारि कुमारी जाणी करी राई मंत्रीनिं पूछयुं फरी । ते नारिनुं कस्युं सरुप मंत्री कहइ यम देवीरूप ॥५२॥
॥ दूहा ॥
गाहा - गाथइ नवि रीझीओ । रीषभ कहइ रागेण । रंभा - रूप्य न भेदीओ जोगी के दरीद्रेण ॥५३॥
॥ चोपई ॥
दारीद्री न लहइ रसभेह सुणी वात राजा हरखेह । नारी रूप लघुं अद्भुत मीथलाम्हा मोकलीओ दुत ॥५४॥ एणइ अवसरि चंपानो धणी दूतो (?) मोकलइ कन्या भणी । सोय कथा सूणतां स्युभ थाय घणा कालनुं पातिग जाय ॥५५॥ अरहनक श्रावकम्हा शरइ चंपामाहा ते रहइवुं करइ । धन काजिं ते चढीओ वाहाणि इंद्र वखाणइ बहु गुण जाणि ॥ ५६ ॥ समकीतस्युं जेहनिं वरत बार पडीकमणा पूजा वीवहार । न चलाइ धर्मथी घणो ववेक सुणी देवता आव्यो एक ॥५७॥ काउछर्ग ध्यानि श्रावक रहइ आवी देव तस एहेवुं कहइ । मुक्य धर्म खोटो शु करइ श्रावक वात हईइ नवि धरइ ॥ ५८ ॥ आकाशमाहिं ऊछालु वाण ध्यान न चूकइ श्रावक जाण । देवि परीसहि कीधो धणो धर्म न मुकइ ते आपणो ॥५९॥ ऊतम साध तणी ए सीम विरि मरइ नवि खंडइ नीम | स्त्रीअक्रपा रोवत शणगार (?) बीहीकि नवी छंडइ व्रत - भार ॥ ६० ॥
॥ दूहा ॥
वीरवचननिं जाणतो सकल भाव समझेह |
अस्यो साध बहु पूरषना बहुअ वचन खमेह ||६१ ||
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