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________________ डिसेम्बर-२००९ ११५ पणि माया तप महीमा जुयो त्रीजइ भवी स्त्रीवेदई हुवो । तेणइ माया म म करयो कोय कपट तजई सुखशाता होयं ॥२२॥ मुकी कपट छइ तप करइ माहाबल ते माया मनि धरइ । चोरासी लखि पूर्व आय सातइ जीव ते सुरपति थाय ।।२३।। पाम्या सखरुं जइअंत वीमान बत्रीस सागर आउं नीध्यान । काईक हीण छर्नु ज कहीश मल्लीतणुं पुरु बत्रीश ॥२४॥ चव्या देव ने पूरी आय एक अयोध्यानगरी राय । नामि नृप हुंओ प्रतीबुध पालइ राज न गमइ ज अस्युध ॥२५।। अंगदेसम्हां चंपा जुओ बीजो अंगमहीपति हुओ । कासीदेस नयर कासीह शंखराय त्रीजो हुओ सीह ॥२६॥ कुंणाला नगरी छइ ज्याहि चोथो रूपी राजा त्याहिं । अदिनशत्रु पंचम रीधि घणी हस्तनागपूरनो ते धणी ॥२७॥ पंचालदेस कांपीलपूर ज्याहिं यत्रस्युत्रु छठ्ठो हुओ त्याहि । माहाबल जीव चवइ सातमो मलीनाथ जीनवरनिं नमो ॥२८॥ जंबुद्वीप अनोपम ज्याहिं भरतखेत्र वसंतुं माहिं । वीदेहदेसनिं मीथुलापूरी राजा कुभ सरगिं यम हरी ॥२९।। प्रभावती पटराणी जेह संसारसुख वलसंती तेह । फागण शुदि चोथिंसु चवइ, राणी कुखि ऊपनो हवइ ॥३०॥ स्यूपन चऊद देखइ नृपनारि गज वृषभो सही लछि वीचारि । कुंशम-दाम चंदो नि सुर धजा कुभ शर जल-भरपूर ॥३१॥ सागर देव-व्यमान सुमार रत्नरेढ अग्यनी ज अपार । चऊंद स्युंपन ए नारी लहइ जागी कंत तणइ जई कहइ ॥३२॥ कुंभराय कहइ सुत बलवंत होसइ चक्री के अरीहंत । अस्युं वचन भाखइ मुखि राय वाहाणइ तेड्या पंडीत राय ॥३३॥ छोडी पूस्तग बोल्या तेह चक्र कइ जिन होसइ एह । सुण वचन नि हरख्यो राय पंडीतनि कीधो ज पसाय ||३४|| नव महीना दीन उंपरि सात जातइ जाया सुता वीख्यात । मागशर शुदि अग्यारसि गणो जनम हुओ ज जिनेस्वरतणो ॥३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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