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________________ अनुसन्धान-५० सातइ न्हाना सातइ गुणी सातिं सात नरगगति हणी ।।९।। सातइ चालइ एकइ च्यंत ज्यम तरणीना अश्व अत्यंत । रूप कला विलछी जेह तेणइ करी सातइ सरखा तेह ॥१०॥ सातइ मत्री छइ ख्यत्री ग्नाति रहइ एगठा दीन नि राति । एक एक पाखइ न विसरइ प्राहिं भोजन भेला करइ ॥११॥ ॥ दूहा ॥ भोजन करी करावीइ दुख सुख सूणी कहंत । दीजइ लीजइ प्रेमस्यु मेत्री एम वध्यंत ॥१२॥ वचन वाद निं, स्त्री एकात वणजह दुरि गया य । अवसरी चूक लोभई पड्यो मंत्री एम पलाय ||१३|| || चोपई ।। छइ दोष टालइ नर सार मंत्री राखइ सात कुमार । अचल धर्ण दीठइ आणंद पूरण वसू वेसमण अभीचंद ॥१४॥ म्हाबल राजा ते सातमो मंत्री-मेलो पूंनि हवो । । सातइ साधकइ सुणता धर्म जाग्या टालवा पूर्वकर्म ।।१५।। वरधर्म मुनीकइ दीक्षा लीइ अग्यार अंग गुरुं त्यांहांकणी दीइ । अनेक शास्त्र बीजां पणि भणइ करइ सझाय निं पातीक हणइ ॥१६।। साति नर साथि संचरइ विहारकरम महीमंडली करइ । सातइ राख्यो अस्यो वीचार सरखो तप करवो नीरधार ॥१७॥ सरखो तप सहुंइ आदरइ माहाबल रषि त्याहा माया करइ । कहइ मस्तग दूखइ छइ अती तेणइ छठ करस्यु रे जती ॥१८|| मन च्यंतइ हुं मोटो अही परभवि मोटो थाउं तही । एणइ ध्यानि तप अदीको करइ नारीवेद ऊपरयो सरइ ॥१९।। माया कपट म करस्यो कोय क्रोध लोभ मानि तप खोय । तजी ईरख्या साधइ धर्म जाय मुगतिम्हा टाली करम ॥२०॥ मुगतिपंथ म्हाबल साधेह थानक केटलां आराधेह । तीथंकर नामकरम वली जेह तेणइ थानकई नीकाचइ तेह ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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