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________________ डिसेम्बर-२००९ ८७ गुरु ग्यांनादिक गुण भरीयो, दीसै समतागुणनो दरीयो, उपम गोतम अवतरीयो, मनो० ॥२॥ दीपै हरचंद कुल हीरो, वलै मात गुमांनदे जीरो, जिण जननी जायो सुधीरो, मनो० ॥३॥ स्युं राधणपुर रह्या मोही, पवधारो जोधांणे ससोही, गुरु कांई थया निरमोही, मनो० ॥४॥ गुरु दीपै दिनमणीयाली, जिण कुमति लता जड गाली, गुरु प्रतपो कोड दीवाली, मनो० ॥५॥ गुरु पांचे सुमते सुमता, गुरु तीने गुपते गुपता, . वली छत्रीस गुणे करी खमता, मनो० ॥६॥ गुरु पंच महाव्रत धारी, गुरु महीयल बहु यशभारी, गुरु इंद्र तणो अवतारी, मनो० ॥७॥ एक वीनती शत सम गिनज्यौ, श्रीसंघनी निज त्रैवड ज्यौ, गुरु वहिली वलण करेज्यौ, मनो० ॥८॥ गुरु आयां सोभा घणैरी, एह वात छै जांणो अनेरी, गुरु श्रावक मदत भलेरी, मनो० ॥९॥ गुर्जरधरलोक ठगारा, तिण मोह्या गुरुजी हमारा, पिण मरुधरा कांमणगारा, मनो० ॥१०॥ मुख स्युं स्युं बोल ज बोले, कपटी जन कपट न खोलै, वली भोलडा जनने भोलै, मनो० ॥११॥ गुरु खुस्यालविजय सुपसावै, कवि पद्मविजय मन भावै, शिक्ष मनोरविजय गुण गावै मनो० ॥१२॥ ॥ दूहा ॥ रामविजय अतिरंगसुं, करै भंडारनो काम । विनय विचक्षण सुंदरा, विद्याविजयनै प्रणाम ||१|| दांनविजय दाता गुणै, मणिधर मोटो वजीर । दूजा रामविजय नमुं, जिम मूंद्रडी नग हीर ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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