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________________ अनुक्रमणिका अज्ञातकर्तृकः: शब्दसञ्चयः ।। ___ सं. मुनि धर्मकीर्तिविजयः १ श्री जैन तीर्थावली द्वात्रिंशिका सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ ९८ पांच हरियाळी -- उपाध्याय भुवनचन्द्र १०४ श्री आचार्यजीना बार मसवाडा सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ १०८ त्रण लघु रचनाओ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि ११५ विमलहंसगणि प्रणीत : श्री मेघागणि निर्वाण रास म. विनयसागर १२२ श्री कुशलवर्द्धनरचित : श्री विजयहीरसूरि स्वाध्याय म. विनयसागर १२५ चतुर्विंशति-जिन-स्तुति के प्रणेता चारित्रसुन्दरणि ही हैं म. विनयसागर १२७ विहंगावलोकन म. विनयसागर १३० अज्ञातकर्तृक : भोजनविच्छित्तिः सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री १३१ ढूंक नोंध : 'पुष्पमाला चिंतवणी' मां सूचित 'क्रीडा' अंगे विवरण १४१ 'नारद' के व्यक्तित्व के बारे में जैन ग्रन्थों मे प्रदर्शित संभ्रमावस्था ले. शोधछात्रा : डॉ. कौमुदी बलदोटा १४४ विहंगावलोकन (अंक ४६-४७-४८y) - उपा. भुवनचन्द्र १६९ नवां प्रकाशनो आनन्दप्रद माहिती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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