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________________ १७२ अनुसन्धान ४९ अभ्यासपूर्ण संशोधनलेखोने प्रकाशित करी विद्वानोना अभ्यास परिश्रमनो अने संशोधन कार्यनो आदर करवो तथा जरूर लागे त्यां संतुलित/सौम्य प्रतिवाद करवो - सम्पादक आचार्यश्रीनो आ अभिगम स्वस्थ, स्तुत्य अने विरल-दुर्लभ ज छे. बे सुप्रसिद्ध जैन शास्त्रकार सूरिपुरन्दरोनी बे अप्रसिद्ध कृतिओ - छन्दोनुशासन अने तेनी टीका - 'अनु०' ४७मां प्रगट थई छे. मूळ ग्रन्थकार एक महान संघनायक आचार्य छे अने ए ग्रन्थना टीकाकार एक प्रतिभासम्पन्न बहुमान्य व्याख्याकार तथा सर्जक आचार्य छे. ग्रन्थनो विषय छे प्राकृत छन्दो अने तेनी टीकानी रचना थई छे, अजित नामना श्रावकनी उत्साहभरी मागणीथी. अध्ययनअध्यापन-सर्जन ए काळे जैन श्रमणसंघ तथा श्रावकसंघमां एक सहज आराधनाना भाग रूपे केवा व्याप्त हशे तेनी कल्पना आवी कृतिओ आपी जाय छे. एक ज प्रतिना आधारे - ते पण तेनी फोटो कोपीना आधारे - आनी प्रतिलिपि थई छे तेथी मूळ तथा टीकाना पाठमां अशुद्धता रहेवा पामी छे. पाठ न समजी शकायाथी वाचना पण क्यांक अस्तव्यस्त रही छे. कृतिना सम्पादक तथा 'अनुसन्धान'ना सम्पादक - एम बे विद्वानोना हाथे एनो परिष्कार थयो छे एटले कृति मोटा भागे शुद्ध थई शकी छे. कल्पसूत्रनी एक सुवर्णाक्षरी प्रतिनी प्रशस्ति आ अंकमां छे, एमां पुष्कळ ऐतिहासिक माहिती छे. बीजा श्लोकमां अशुद्धि छे तेथी सम्पादके करेलो अर्थ पण सन्दिग्ध रहे छे. श्लो. ७मां जन्मात्सौ' छे त्यां '०जन्मानौ' पाठ कल्पी शकाय छे. राजस्थानी भाषानी १८मी सदीनी एक रचना : 'अभयकुमार चौपाई' रसप्रद छे. सम्पादके राजस्थानी भाषाने जाळवीने सम्पादन कयुं छे. शब्दकोशमां हजी वधारे शब्दो समाववानी जरूर हती, तेम 'दीक्षा' जेवा सुपरिचित शब्दो लेवानी जरूर न हती. ढा. १ विद्ध = विधि (क. ७) चाटू = चाटवो, डोयो (क. ११) ढा. ३ नौली = नाळ, नळी (कपड़ानी लांबी थेली जेमां पैसा भरी • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520549
Book TitleAnusandhan 2009 09 SrNo 49
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages186
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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